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आर्यपुरुष कौन ? है कि जैन दिवाकर चौथमल जी स्वामी ने भी 'सीता वनवास' नामक पुस्तक एक ही राग में लिखी है। वह भी अग्नि-परीक्षा जैसी ही है। भाई, जिस प्रकार पूर्वाचार्यों ने प्राकृत में 'तेसद्विपुरिसचरियं' बनाया, उसके ही आधार पर भाचार्य हेमचन्द्र ने 'त्रिषष्ठि शलाका पुरुप-चरित' बनाया और उसी के आधार पर उपाध्याय समयसुन्दर जी और केशवराज जी ने रामायण का निर्माण किया। उसी प्रकार पहिले वाल्मीकिजी ने पहिले संस्कृत में रामायण वनाई, फिर तुलसीदास जी ने अपनी रामायण बनाई, तो सभी में राम और सीताजी के चरित का वर्णन है। मूल कथानक में कोई अन्तर नहीं है। हां घटनाओं का चित्रण किसी ने विस्तार से किया है, तो किसी ने संक्षेप से किया है। अभी आपके सामने कृष्ण जी का और कंस का प्रकरण चलता है तो जैसे क्षुद्र वचन कंस ने कृष्ण जी के लिए कहे है, वे यदि नहीं बताये जायेंगे तो कैसे पता चलेगा कि कौन कौन है और किसका चरित भला या बुरा है। इसी प्रकार सीताजी के लिए अग्नि-परीक्षा पस्तक में जो कुछ लिखा गया है, वह आचार्य तुलसी नहीं कह रहे हैं, किन्तु धोबी और सीता की सौतें कह रही हैं। उन्होंने तो उन बातों को लेकर केवल कविता-बद्ध कर दिया है। हां, यह हो सकता है कि कहीं कवि की कल्पना में एक शब्द के स्थान पर चार-पांच शब्दों का प्रयोग कर दिया हो और कहीं कोई कठोर शब्द मा गया हो ? परन्तु वह पक्ष तो पुराना ही है, आचार्य तुलसी ने कोई अपने मन से गढ़ कर नहीं लिखा है। पर इस साधारण सी बात को लेकर जो इतना ऊधम मचाया गया, सतियों के ठहरने के स्थान पर पत्थर फेंके गये और न मालूम क्या-क्या किया गया और खुल कर गालियों का और गन्दे शब्दों का प्रयोग किया गया ? क्या यह धर्म है और क्या यह आर्यपना है। यहां पर आप लोग यह बात छोड़ दें कि हमारे और आचार्य तुलसी के विचारों में कुछ सिद्धान्त भेद हैं। परन्तु आचार्य तुलसी का अपमान सारे जैन समाज का अपमान है । यह आचार्य तुलसी का पंडाल नहीं जला है, परन्तु सारे समाज का जला है। आचार्य तुलसी ने सनातन धर्म के अग्रणी करपात्री जी से कहा-आप स्वयं पुस्तक देखें और उसमें यदि कोई अनुचित वात दिखे तो जैसा आप कहेंगे, मैं वैसा संशोधन करने को तैयार हूं। मगर वे उस पुस्तक को भी देखने के लिए तैयार नहीं हुए। और समाचार पत्रों में तो यह भी प्रकाशित हुआ है कि उन्होंने यहां तक कहा कि यदि कोई नेता हमें रोकेगा तो हम उसे निन्दनीय मानेंगे। उनके अनुयायी विना विचारे जैसा कह रहे है, वे उसे ही मान रहे हैं और यहां तक प्रचार कर रहे है और धमकी दे रहे हैं कि