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प्रवचन-गुधा
भाइयो, यह प्रतिक्रमण भी गया है ? अपने धर्म की गाड गभानना है। जैसे आप लोग शाम को दुकान की रोपार गभानते हैं और दिन भर में भागव्यय का लेखा-जोगा करते है, उसी प्रकार माधु भी अपने प्रतों का शाम गो लेखा-जोखा करता है कि मेरे व्रत किनमे निलिनार रहे और कितनों में अतिचार लगा है। गर्न तो के २५५ अतिचार होते है । ६६ अतिगार धारकों में है और १५६ अतिचार साधुओं पे होते हैं। महात्मा जी ने प्रतिक्रमण करते हुए पहिले अहिंगा महादत या मिनामि दुनाट गोला । नदारत्रात् मत्यमहानत, अस्तेय महानत और ब्रह्मचर्य महाग्रत का मिन्ठामि दुसकढ' बोला । जब पांचवे महारत का नम्बर भागा तो मन विचार आया कि में जर परिग्रह लेकर बैठा है, तब मिठाभिदुलाई' चौमै बोल ? यह सोच कर पाचवें महावत का 'मिच्छामि दुवकट नहीं दिया । श्रावक ने सोचा कि आज महात्मा जी भूल गये, या क्या बात है जो पांचवें प्रत का प्रतिकमण नहीं किया । जव श्रावक ने लगातार चार-पान दिन तक यही हाल देता, तो उसने सोचा कि महात्मा जी के इस व्रत में कहीं न कहीं कुछ मामला गड़बड़ है। दूमरे दिन जब महान्मा जी पलेवना करके वाहिर गये हुए थे, नव श्रावक ने एकान्त पाकर महात्मा जी के मारे सामान को संभाला--- देखभान्न की, परन्तु कोई चीज नहीं मिली। जब उसने पाटे को उठा करने देखा तो एक गड्डे में कपड़े का एक टुकड़ा नजर आया। उसने उसे निकाल कर जो खोला तो बहु. मुल्य हीरा दिखा। उसने कुछ देर तक तो नाना प्रकार से विचार किया। अन्त में उसने उसे अपने पास रख लिया। जब महात्मा जी बाहिर से आये तो एकान्त देखकर पाटे के गड्ढ़ मे उसे संभाला तो होरा को गायव पाया । पहले तो उन्हें कुछ धक्का-सा लगा। पीछे विचारा कि चलो-~-सिर का भार उतर गया। शाम को जब प्रतिक्रमण का समय आया तो उन्होंने चारों व्रतों के समान पांचवे व्रत का भी 'मिच्छामि दुवकडं जोर से बोला । श्रावक ने देखा कि मामला तो हाथ में आगया है। फिर एक बार-और भी निर्णय कर लेना चाहिए। जब प्रतिक्रमण पूर्ण हुया तो उसने महात्मा जी के पास जाकर चरण-वन्दन किया और पूछा - महाराज, सुखसाता है ? महात्मा जी बोले-पूरी सुख-साता और परम आनन्द है । पुन: उसने विनय पूर्वक पूछागुरुदेव, एक शंका है कि अभी बीच में तीन-चार दिन पांचवें महाव्रत का 'मिच्छामि दुक्कडं नहीं लिया, सो क्या बात हुई और आज फिर कैसे लिया ? महात्मा जी ने सहज भाव से हीरा मिलने से लेकर आज तक की सारी बात ज्यो की त्यों कह सुनाई । आज किसी मेरे हितपी ने उठाकर मुझे उस पाप से