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प्रवचन-सुधा
तत्पश्चात् जब सवका खान-पान हो गया, तब श्रेणिक ने कहा-सेठ जी, अब आप भोजन के लिए वैठिये, हम आपको भोजन परोसेंगे। भाई, यह ताजीम क्या कम है, जो इतने बड़े राज्य का राजा अपने हाथ से भोजन परोसने की बाल कहे । इससे बढ़कर और वया इज्जत हो सकती है।
श्रेणिक के द्वारा अपने जीमने की बात सुनकर मम्मण बोला-महाराज, मेरे भाग्य में जीमना कहां है ? सबके भोजनपान से निवृत्त होने के पश्चात् अलग से मेरे लिए रसोई बनेगी, तब मैं खा सकूँगा । श्रेणिक वोले-सेठजी, आज आपको अपने हाथ से परोसकर और आपको जिमा करके हम जावेगे । तव रसोइया बुलाया गया । उसने चूल्हा चेताया और एक भरतिया पानी भरकर चढ़ा दिया। उवाला आने पर दो मुट्ठी उड़द उसमें डाल दिये । जव वै उवल गये तो उन्हें निकाला गया । श्रोणिक ने पूछा-सेठजी, क्या-क्या और साथ में परोसा जाय । वह वोला-महाराज, और कोई चीज नही परोसिये, केवल इस घट में से थोड़ा सा तेल डाल दीजिए। उन उड़द की घुघरियों में तेल के डाल दिये जाने पर सेठ ने फांका लगाना प्रारम्भ किया। यह दृश्य देखकर सारे सरदार और महाराज भी चित्र लिखित से देखते रह गये। सब सोचने लगे-देखो, इसने हम लोगों को तो वढ़िया से बढ़िया माल खिलाये हैं और यह कोरे उड़द के वाकुले खा रहा है । श्रेणिक ने कहा-...अरे सेठजी, मिठाई छोड़कर के ये वाकुले क्यों खा रहे हो? वह वोला-~-यदि पेट में मीठा चला गया तो अभी दस्त लगना शुरू हो जावेंगे और फिर उनका रोकना कठिन हो जायगा । श्रेणिक को समझ में उसकी ऐसी स्थिति का रहस्य कुछ भी समझ नही आया । तब वे एक अवधिज्ञानी मुनि के पास गये और मम्मण की ऐसी परिस्थिति का कारण पूछा । उन्होंने कहा-राजन्, यह पूर्व भव में घी को वेचने वाला बनिया था । इधर-उधर से लाकर घी बेचता था और उससे जो चार-आठ आने मिल जाते उससे यह अपना निर्वाह करता था-+ यह अकेला ही था। एक समय किसी सेठ ने किसी खुशी के अवसर पर न्यात भोजन के बाद सवा-सबा सेर के लड्डू लेन में बंटवाये 1 इसके यहां भी एक लड्डू आया । इसने सोचा - 'आज तो भोजन कर ही आया हूं, अत: यह कल काम में आ जायगा' यह सोचकर इसने घी के घड़े के ऊपर उसे रख दिया । जैसे ही यह घर से बाहिर निकला, ही मासखमण की तपस्या करने वाले एक मुनिराज को गोचरी के लिए आता हुआ इसने देखा । उन्होने जैसा अभिग्रह किया हुआ था, वैसी ही सब बाते इसके यहां मिल गई। इसने भी लाभ दिलाने के लिए साधु 'से प्रार्थना की और कहा--स्वामिन्, पधारिये और मुझ पुण्य-हीन दरिद्री का