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मनुष्य की चार श्रेणियां
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मैं क्या कहूं ? पर यह समझ में नहीं आया कि इतना धन होने पर भी ऐसे बरसाती मौसम में स्वयं लकड़ी की भारी लिए क्यों आ रहा था। इतना धनवभव होने पर भी यदि यह भारी लाकर रोटी खाता है, तो फिर इससे हीन पुन्नी और कौन हो सकता है ? ___मम्मण सेठ ने महाराज से प्रार्थना की कि रसोई तैयार है, भोजन के लिए पधारिये । श्रेणिया ने कहा- क्या मेरा जीमना अकेले होता है ? मम्मण बोला-महाराज की माजा हो तो सारी नगरी सौ बार जिमा दू । श्रेणिक ने कहा- सेठजी, जब ऐसी सामर्थ्य है, तब फिर रात को भारी लिए कैसे आ रहे थे। मम्मण बोला-- महाराज, रात की बात मत पूछिये । इससे मेरी शान जाती है। वह वरदान अलग है और यह वरदान अलग है । मैं अपने लिए ही अभागी हूं। अन्यथा मेरे कोई कमी नहीं है, सबके लिए रसोई तैयार है सो भोजन कीजिए।
जच श्रेणिक उसके भोजनालय में गये तो वहां की व्यवस्था देखकर दंग रह गये । उन्हें स्वप्न मे भी कल्पना नहीं की थी यह मेरे साथ इतने लोगों को चांदी की चौकियों पर बैठाकर सुवर्ण के थालों में जिगा सकता है । नाना प्रकार के पकवान और मिष्टान्नों से थाल सजे हुए थे । सोने की कटोरियां नाना प्रकार की शाकों, रायतों और दालों से भरी हुई थी और सोने की रकावियां नमकीन वस्तुओं से सजी हुई रखी थी। सुवर्ण के प्यालों में नाना प्रकार के पेय पदार्थ रखे हुए थे । उसके ये ठाठ-बाट देखकर श्रेणिक ने बहुत ही चकित होते हुए भोजन किया। बाद में मम्मण ने पान-सुपारी आदि से सवका सत्कार किया । तत्पश्चात् श्रेणिक ने चेलना से कहा- अपने लोग क्या समझकर माये थे और धया देख रहे है । जब इसने अपने स्वागत-सत्कार में इतना व्यय किया है तो इसे क्या देना चाहिए। अभयकुमार से भी इस विषय में परामर्श किया। और कहा कि कुछ न कुछ इसे देकर और इसका उत्साह बढ़ा करके जाना चाहिए।
भाइयो, पहिले के राजा-महाराजा लोग यदि किसी के यहां जीमने जाते थे तो उसका उत्साह बढ़ाकर साते थे। आज के ये टोपीवाले शासक आते हैं तो यों ही चले जाते हैं। यदि उन्हें दस हजार की थैली भी मेंट करो तो ये जाते समय वच्चे के हाथ पर पांच रुपये भी रखकर नहीं जाते हैं।
हा, तो अभयकुमार ने कहा-इसका सन्मान बढ़ा दिया जाय-ताजीम वढा दी जाय, जिससे अपना कुछ खर्च भी न हो और इसकी देश भर में प्रसिद्धि भी हो जाय । श्रेणिक ने कहा- अभय, तुम्हारी सलाह उचित है।