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प्रतिसंलीनता तप
उपदेश सुना पर कोरे के कोरे ही रह गये । अरे, भगवान ने कई बार कहा है कि
फम्मुणा बंमणो होई, करमुणा होई खत्तियो ।
वइसो कम्मुणा होई, सुद्दो हवइ कम्मुणा ।। पति देव, किसी कुल में जन्म लेने मात्र से ही कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र नहीं होता है। किन्तु उत्तम काम करने से ही मनुष्य ब्राह्मण, कहलाता है, क्षत्रियोचित काम करने से क्षत्रिय कहलाता है, वैश्य के काम करने से वैश्य कहलाता है और शूद्र के काम करने से शूद्र कहलाता है। अतः आप जाति-पांति का विचार छोड़िये और मुझे हुकारा भरिये, जिससे कि मेरी गोद भर जाय और चिरकाल की झरना दूर हो जाय । सेठानी के इन जोरदार वचनों को सुनकर सेठ ने भी हुंकारा भर दिया।
अव सेठानी उस महत्तरानी को जाजरु साफ करने को आने पर नित्य नई चीजे खाने-पीने को देने लगी और पर्व त्योहार के अवसर पर वस्त्र आदिक के साथ मिठाई और फल-मेवा आदि भी देने लगी। यथासमय महत्तरानी ने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। वह रात के अंधेरे में ही उसे कपड़े में लपेट कर सेठानी के घर आई और पुत्र को सीप कर चुपचाप वापिस लौट गई।
पुत्र का मुख देखते ही सेठानी के हर्ष का पार नहीं रहा । उसने उसी समय ___ गर्म जल से स्नान कराया और तत्काल जात पुत्र के योग्य जो भी काम
होते हैं, वे सब किये और दासी से प्रसूति का समाचार सेठ के पास भिजवा करके वह प्रसूतिगृह में सो गई। दासी ने जाकर सेठ को बधाई दी और सेठ ने भी उसे भरपूर इनाम दिया। और हर्प के साथ सभी जात-कर्म किये, मंगल-गीत गाने गये, वाजे बजवाये गये, और याचको को भरपूर दान भी दिया और जातिवालों को प्रीति भोज भी कराया । उसका नाम मेतार्य रखा गया । गुलाब के फूल जैसा बालक का मुख देखकर सेठ और सेठानी के आनन्द का पार नही रहा । उसे देख-देखकर वे हर्प के आनन्द-सागर मे गोते लगाने लगे और अपने भाग्य को सराहने लगे । बालक भी दोज के चाद के समान बढ़ने लगा। जब वह आठ वर्ष का हुआ तब उसे कलाचार्य के पास पढाई के लिए बैठा दिया । अल्प समय मे ही वह सव कलाओं में पारंगत हो गया । दिन पर दिन उसके सगपण याने लगे और यथासमय सेठ ने एक-एक करके सात सुन्दर कन्याओं के साथ उसका विवाह कर दिया । अव मेतार्य कुमार अपनी स्त्रियों के साथ सुख भोगते हुए आनन्द से रहने लगे। और पिता के साथ घर का भी कारोबार सभालने लगे।