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प्रवचन-मुधा
चिड़ी-कमेड़ी आदि पक्षियों की पुण्यवानी अच्छी है, जो अपनी सन्तान का तो सुख भोगते है । मैं तो सन्तान का मुख देखने की चिन्ता करते करते बूढी हो रही हूं। पर सन्तान के मुख को देखने का सुख ही भाग्य में नहीं है । मैं अपने दुःख की बात तुझे कैसे बताऊँ ? नि.सन्तान स्त्री ही समझ सकती है। महत्तरानी बोला- भगवान् भी कैसे उलटे हैं कि जिनके लिए खाने-पीने की अपार सम्पदा है, उनके तो सन्तान पैदा नहीं करते और हम गरीबों के यहां एक पर एक देते ही जाते हैं । मैं तो इस सन्तान से परेशान हो गई हूं। सात लड़के तो पहिले ही थे और अब यह बाठवां फिर पेट में आगया है। काम करते भी नहीं बनता। मैं तो भगवान से नित्य प्रार्थना करती रहती हूं कि अव और सन्तान मत दे । परन्तु वे तो मानो ऐसी घोर नीद में सो रहे हैं कि मेरी एक भी नहीं सुनते हैं । आप विना पुत्र के दुखी हैं। और मैं इन पुत्रों से दुखी हूं। संसार की भी कैसी विलक्षण दशा है कि कोई पुत्र के बिना नित्य झरता रहता है और कोई पुत्रों की भर-मार से काम करते-करते मरा जाता है, फिर भी खाने को नहीं पूरता है । भाई, इस बात का निर्णय कौन करे कि सन्तान का होना अच्छा है, या नही होना अच्छा है। सन्तान उसे ही प्यारी लगती है, जिसके पास खाने-पीने के सब साधन हैं। छप्पन के काल में लोग अपनी प्यारी सन्तान को भी भूज-भूज कर खा गये।
हां, तो वह महत्तरानी बोली- सेठानीजी, मेरी एक वीनती है-ज्योतिषी ने बताया है कि तेरा यह माठवां पुत्र वड़ा भाग्यशाली होगा । भगवान् के यहां से तो सब एक रूप में आते हैं, पीछे यहां भले-बुरे कर्म करने से ही ऊंच-नीच कहलाने लगते हैं। सो यदि माप कहें तो मैं अब की बार पुत्र के जन्म लेते ही आपकी सेवा मे हाजिर कर दूं ? सेठानी ने कहा-तेरा कहना तो बिलकुल सत्य है । मैं सहर्प उसे लेने को तैयार हूं। मगर देख -कहीं 'बात' उजागर न हो जाय ? अन्यथा हमारा महाजना मिट्टी में मिल जायगा। महत्तरानी बोली-सेठानीजी, आप इस बात की विलकुल भी चिन्ता न करें। हम स्त्रीपुरुष के सिवाय यह बात किसी तीसरे को भी ज्ञात नहीं होने पायगी। सेठानी ने कहा-यदि वात गुप्त रहेगी तो मैं तुझे मालामाल कर दगी, पर बात किसी तीसरे के कात तक नहीं जानी चाहिए। महत्तरानी बोली आप इस बात से विलकुल निश्चिन्त रहें । यह कहकर वह अपने घर चली गई।
एक दिन अवसर पाकर सेठानी ने उक्त बात अपने सेठ से कही। वह बोला अरी, तू तो पुत्र के मोह में जाति- और कुल को ही बिगाड़ ने पर उतारू हो गई है ? तव वह बोली—आपने इतने बार भगवान महावीर का