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आत्मलक्ष्य की सिद्धि
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छानता मिलेगा, या निद्रा लेता हुआ मिलेगा। जिसके पास काम है, वह इन दोनों ही के सम्पर्क से दूर रहेगा। विपय और कपाय तो स्पष्ट रूप से ही आत्मा का अहित करनेवाले हैं। जिनकी दृष्टि आत्मा की ओर नहीं हैं वे लोग ही पंचेन्द्रियों के विपय-सेवन में मग्न रहते है, उन्हें इसी जन्म में ही अनेक रोगो की भयंकर यातनाएँ भोगनी पड़ती हैं और परभव में नरकादि गतियों में जाकर अनन्त दु:ख भोगना पड़ता है । यही हाल कपायों के करने का है। कषायों को करने वाला व्यक्ति इसी जन्म में ही कपायी कहलाता है और निरन्तर सन्तप्त चित्त रहता है। उसे घर के भीतर भी शान्ति नहीं मिलती तथा परभव में तरकादि दुर्गतियों में अनन्तकाल तक परिभ्रमण करते हुए असीम दुःख उठाना पड़ते हैं। इसलिए ज्ञानी पुरुप तो सदा इनसे बचने का ही प्रयत्न करते हैं और यह भावना भाते रहते हैं कि
आतम के अहित विषय-कपाय, इनमें मेरो परिणति न जाय । मैं रहूं आपमें आप लोन, सो करहु, होहुं ज्यों निजाधीन ।। भाइयो, आप लोग व्यापारी हैं और जव व्यापार जोर से चलता है और जब सवाये-डयोड़े हो रहे हैं, तब यदि ग्राहक किसी वस्तु को दिखाने के लिए दस वार भी कहता है तब भी आप उसे वह वस्तु उठा-उठा करके दिखाते हैं । उस समय भूख-प्यास भी लगी हो तो भी खाना-पीना भूल जाते हैं और यदि नींद भी ले रहे हों तो जागकर ग्राहक की फरमायश पूरी करते हैं 1 जव लौकिक एवं विनश्वर इस लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए ये सब प्रमाद छोड़ना आवश्यक होते हैं, तब आत्मिक और अविनश्वर मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए तो और भी अधिक प्रमाद-रहित होने और जागरूक रहने की आवश्यकता है। अनादिकाल से हमारे ऊपर विषय-कपाय की प्रवृत्ति से जो कर्म-जाल लगा हुआ है उससे छूटने के लिए नवीन कर्मोपार्जन से बचना होगा और पुराने कर्मजाल को काटना होगा। और ये दोनों कार्य तभी संभव हैं, जबकि आप प्रमाद को छोड़ेंगे। आपके सामने बैठे हुए ये लड़के अभी गप्पें मारने और खेलने-कूदने में समय बिताते हैं। किन्तु जब परीक्षा का समय आता है, तव यह भूल जाते हैं और पढ़ाई में ऐसे संलग्न होते हैं कि फिर खाने-पीने की भी सुध-बुध नहीं रहती है। क्योंकि ये जानते हैं कि यदि परीक्षा के समय भी हम खेल-कूद में लगे रहेंगे तो कभी भी उत्तीर्ण नहीं हो सकेंगे। तो भाई, आप लोगों को जो यह मनुष्य भव मिला है, वह एक परीक्षा काल के समान ही है। यदि इसमें पुरुषार्थ करके अपना कर्मजाल काट दिया और इस संसार से