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विचारों की दृढ़ता
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राजा श्रेणिक और उपस्थित लोग भरत का यह साक्षात् नाटक देखकर मुख मे संगुली दवाकरके रह गये। वह विदेशी नृत्यकार भी यह देखकर दंग रह गया । ___भरत को केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ जानकर देवगण आकाश में जय-जयकार करने लगे। जब आपाढभूति केवली रंगभूमि से वाहिर निकले तो पांचसौं मनुप्यों ने उनसे संयम अंगीकार किया। मापाढ़भूति उन सबके साथ अपने . गुरु के पास गये । अनेक सन्तों को आता हुआ देखकर गुरु के संघस्थ साधु चर्चा करने लगे कि यह किस महात्मा का संघ आ रहा है । गुरु देव को पहिले ही पता था। जब आपाढ़भूति सामने पहुंचे तो गुरु ने कहा --- अहो मुने, चेत गए ? उन्होंने कहा- आपने चेतन का मार्ग बताया था, उसी के प्रताप से मैं चेत गया हूं। तत्पश्चात् गुरु ने पूछा- अहो केवली, बताइये- मैं भव्य हं, या अभव्य ? तब केवली ने कहा आप इसी भव में मोक्ष जायेंगे । यथासमय गुरु की भाव गुद्धि बड़ी और वे भी केवल ज्ञान प्राप्तकर मोक्ष को पधार गये।
भाइयो, मानव या इन्सान वही है, जिसके विचार, धारणा और सिद्धान्त एक ही रहते हैं । जो जरासा भी निमित्त मिलने पर अपने विचारों और भावों को बदलता है, उसे मानव नहीं कहा जा सकता है। देखो आपाढ़भूति गिरे तो कहां तक गिरे और चढ़े तो कितने चढ़े ? क्या आप उनको गिरा हुआ मानेंगे ? वे गिरने पर भी गुरु की इस शिक्षा पर दृढ़ रहे कि जहाँ पर मांस-मदिरा का सेवन होगा, वहां पर मैं नहीं रहूँगा और ऐसे लोगों के साथ किसी प्रकार का संपर्क ही नहीं रक्खू गा । जो गुरु की शिक्षा को मानने वाले हैं, उनका कल्याण क्यों नहीं होगा ? अवश्य ही होगा। यदि कोई पुरुप आचार्य भी वन जाय, परन्तु विनयवान् नहीं रहे और उनकी आज्ञा से बाहिर चला जाय, तो उसका पतन होगा ही। भाई, जैन मुनि आज ही पैदा नहीं हुए हैं और न जैन सिद्धान्त और उसके कथानक भी आज ही उत्पन्न हुए है। ये तो अनन्त काल से चले आ रहे हैं । तथा अन्य मत भी सदा से चले आ रहे है और लोगों का उत्थान-पतन भी हमेशा से होता आया है। किन्तु वे ही मनुष्य इस संसार-गर्त से अपना उद्धार कर पाते है, जो कि आत्म-उद्धार के लक्ष्य पर दृढ़ रहते हैं । पहिले के आचार्य स्वयं अपने कर्तव्य-पालन में दृढ़ होते थे तो उनके शिष्य भी चैसे ही कर्तव्य-परायण होते थे। आचार्य को सूर्य के समान तेजस्वी और प्रतापी होना चाहिए, जिसके तेज और प्रताप से शिष्यगण दहले और पापाचरण से दूर रहें। आज हम लोगों के पास आडम्बर है---ढोंग है और कोई भी ऋद्धि-सिद्धि नहीं है । यही कारण