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प्रवचन-मुधा दुखित होती हुई बोलीं-पिताजी, भूल तो हम लोगों से हो गई। अव आगे कभी भी उन वस्तुओं का सेवन नही करेगे। आप किसी प्रकार उन्हें मना करके वापिस लाओ। भरत बोला- हमें तो आशा नहीं है कि वे वापिस आयेगे । फिर भी मैं लाने का प्रयत्न करूंगा ।
सच्चा नाटक : __ आपाढभूति भरत की हवेली से निकलकर रातभर एक एकान्त उद्यान में रहे। रात-भर उनको नींद नहीं आई और वे अपने पिछले जीवन का विहंगावलोकन करते रहे । तथा भरत-चक्रवर्ती के जीवन के चिन्तन में निमग्न रहे। दूसरे दिन वे यथासमय राज-सभा में गये । देखा कि मब और अगणित नर नारी भरत का नाटक देखने की उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा कर रहे हैं। घंटी बजने के साथ ही आपाढ़भूति ने रंगभूमि में प्रवेश किया और सर्वप्रथम भरत द्वारा की गई दिग्विजय का चित्र प्रस्तुत किया । तत्पश्चात् नगर मे सुदर्शनचक्र के प्रवेश नहीं करने पर और पुरोहित द्वारा अपने भाइयों के आज्ञानुवर्ती नहीं होने की बात को जानकर उनके पास अधीनता स्वीकार करने के लिए सन्देश भिजवाया। बाहुबली के सिवाय शेप भाई तो उसे सुनते ही दीक्षित हो गये। किन्तु बाहुबली ने उनकी अधीनता को ठुकरा दिया । तब भरत और बाहुबली का ऐसा अद्भुत युद्ध आपाइभूति ने दिखाया कि सारी सभा विस्मित होकर देखती ही रह गई। जब वाहुबली की तपस्या का दृश्य दिखाया तो उनके नाम के जयनाद से आकाश गूंज उठा। भाई, जिसके पास शक्ति होती है, ऋद्धि-सिद्धि होती है, उसे अद्भुत कार्य करने में भी क्या लगता है ?
तत्पश्चात् भरत द्वारा ब्राह्मणों की उत्पत्ति का भी अद्भुत दृश्य दिखाया। अन्त में भारीमा-भवन का दृश्य प्रस्तुत किया। अभी तक तो आपाढ़भूति भरत का द्रव्य दृश्य दिखा रहे थे, क्योकि भरत की विभूति, नौ निधि, चौदह रत्न और उनके अपार भोगोपभोगों को ही दिखाया गया था। अव भरत के भावनाटक का अवसर आया तो आपाढ़भूति के भाव भी उत्तरोत्तर बढ़ने लगे । वह भारत के समान ही सर्व आभरणों से विभूपित होकर आरीसा भवन में घूमने लगा। सहसा हाथ की अंगुली से अंगूठी गिर पड़ी । अंगुली निष्प्रभ प्रतीत हुई, तो एक-एक करके सर्व आभूपण उतारना प्रारम्भ कर दिये और शरीर की घटती हुई श्री को देखकर वैराग्य का सागर उमड़ पड़ा। तत्काल संयम को स्वीकार किया और देखते-देखते ही केवलज्ञान और केवलदर्शन उत्पन्न हो गया और आपाढ़भूति केवलज्ञानी बन गये।