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प्रवचन-गुधा
होना है। इगलिए गा को सदा विनयपूर्वक असा अध्ययन करना चाहिए।
सच्चा यज्ञ बारहवा हरिणीय अन्ययन है। इसमे चाण्डाल दुल म उत्पना हरिरोण बल नामक एक महान तपस्त्री नाथु ला वर्णन किया गया है। मान क्षमण की तपस्या के पश्चात् पारणा के लिए वे नगर मे आये । एक स्थान पर ब्राह्मण लोग यज्ञ कर रहे थे। मिक्षा लेने में निाचे यजम में पहन । उनके मलिन एव कृश शरीर को देखकर जानिमद में उन्मत्त, जिनेन्द्रिय, अब्रह्मचारी और अज्ञानी ब्राह्मण उनकी हसी उटाते हुए बोले- अ, यह वीभत्स रूपवाला, काला काला और बढी नानवाला, अधनमा पिशाच-मा कोन आ रहा है ? जब हरिवेशबल समीप पहुचे तो ब्राह्मण बोल-चहा न्यो आये हो ? तुम पिशाच जैसे दिख रहे हो, यहा में चले जाओ। निन्द्रक वृक्षवामी यक्ष से साबु का यह अपमान नही देखा गया और वह उनके शरीर में प्रवेश कर बोला में घमण हूं, सयमी हू, ब्रह्मचारी हूँ, चान-पान के पचन-पाचन से
और परिग्रह से रहित है अत भिक्षा के लिए यहा आया हू । तब यज्ञ करने वाले वे ब्राह्मण बोले--यहा जो भोजन बना है, वह केवल ब्राह्मणों के लिए है, अब्राहाणो के लिए नही ? अतः हम तुम्हें नहीं देगे। दोनो योर मे धर्म पान कौन हैं और कौन नहीं, इस पर बातीलाप होता है और माधु के शरीर में प्रविष्टयक्ष उन' ब्राह्मणो से कहता है
तुभत्थ भो मारघरा गिराणं, अत्य पा जाणाह अहिज्जए ।
उच्चावयाई मुणिणो चरति, ताई तु खेत्ताई सुपेसलाई ॥ हे ब्राह्मणो, तुम लोग इस ससार में वाणी का केवन्न भार ढो रहे हो? वेदो को पढकर भी उनका भयं नही जानते हो? जो मुनि भिक्षा के लिए उच्च और नीच सभी प्रकार के घरो में जाते हैं, वे ही पुण्य क्षेत्र और दान के पान हे । इसलिए हमे आहार दो।
- इस पर क्रोधित होकर यज्ञ कराने वाला ब्राह्मण बोला--अरे, यहा कौन है, इसे डडे मारकर और गलहत्या देकर यहा से बाहिर निकाल दो । यह सुनते ही कुछ ब्राह्मणकुमार मुनि की ओर दौडे और जो, वेतो और चावुको से उन्हे मारने लगे। तब उस यक्ष ने सर्व ब्राह्मण कुमारो को अपनी विक्रिया शक्ति से भूमि पर गिरा दिया और उनके मुख से खून निकलने लगा । तब वहा पर जो राजकुमारी भद्रा उपस्थित थी, उसने सब ब्राह्मणो से कहा -- अरे, ये मुनि उग्रतपस्वी है, अनेक लब्धि-सम्पन्न है। इनका अपमान करके