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समता और विषमता
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मात्र भी दुःख न पहुंचे । किन्तु जो दुर्जन होते हैं, उनकी प्रवृत्ति विपम और कुटिल ही होती है । यदि कोई मनुष्य अपना मकान बेच रहा है और दूसरा व्यक्ति खरीद रहा है तो सम प्रकृति का व्यक्ति सोचेगा कि अपने को ऐसा चलना चाहिए कि अगले व्यक्ति को लाभ हो । किन्तु विपम प्रकृतिवाले को मकान लेना नहीं है फिर भी वह बोली बढा-चढ़ा करके बोलेगा, जिससे कि लेने वाले को अधिक दाम देना पडें । इस प्रकार सम प्रकृति और विषम प्रकृति वाले मनुष्य संसार में सदा से होते आये है और होते आवेंगे । सम प्रकृति वाले थोड़े ही होते हैं भगवान की वाणी का असर सम प्रकृति वाले मनुष्यों पर ही पड़ता है, विपम प्रकृति वालों पर नहीं पड़ता है बल्कि उनको जितनी भी अधिक भगवद्-वाणी सुनाई जायगी, उतना ही उलटा असर होगा, क्योकि उनकी प्रकृति ही विपम है । पिता ने पढ़ा-लिखा करके होशियार बनाया तो उसका उत्तम फल निकलना चाहिए था, किन्तु बुरा निकलता है। वह पढ़ी हुई पुस्तको मे से भली वातो को ग्रहण नही करेगा, किन्तु चोरी-जारी और जासूसी की घटनाओं को पढ़कर उन्हें ही अपनायेगा। वह यदि सन्तो के व्याख्यान भी सुनेगा, तो उसमें से आत्म-कल्याणकारी बात को ग्रहण नहीं करेगा, किन्तु यदि कोई कलह-कथा का प्रसग सुनने में आ गया तो उसे ही ग्रहण करेगा । सम-प्रकृति वाला व्यारयान सुनते समय सामायिक को स्वीकार करेगा। यदि लाज-शर्म व्श दिखाऊ-सामायिक भी करने बैठेगा, तो भी मन की कुटिल प्रवृत्ति उस समय भी चालू रखेगा। भाई, ऐसी सामायिक में क्या रखा है ? कहा भी है कि
कर्म कमावे भारी, काम करे दुराचारी, नयननिसों करे यारी, नाम से समाई को। भूखते मंजारी जैसे, चोट-करे दृष्टिधारी, कैसे अविचारी, काम करत अन्यायी को ।। ऊपर से धर्म धारी, मांहि पाप की कटारी, पोछे होयगी खुवारी, लेखो लेत राई-राई को। बह्म में करत जारी, कहे भजो अनगारी, कवां हित होत नाही, राज पोपा बाई को ।।
सामायिक में समता रखो ! भाई, विपम प्रकृति वाले वातें तो धर्म को करते हैं और कर्म अन्याय का करते है । मायावी आखो से बातें करेंगे और नाम लेगे-सामायिक का 1 एक स्थानक में कुछ स्त्रियाँ सामायिक करने को बैठी। इन लोगों की जवान