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प्रवचन-सुधा लिए)-गैस को मार देता है और एक तृण के लिए महल को गिरा देता है ।' कितना वडा अन्नान है और कितनी तीन कपाय है कि मनुष्य अपने क्षुद्र स्वार्थसाधन के लिए बड़े से बड़ा अनर्थ करने के लिए उद्यत हो जाता है । परन्तु नीचवृत्ति बालों लोगों को कुटिल प्रवृत्ति में ही बानन्द आता है । कहा भी है कि
न हि नोचमनोवृत्ति रेकरूपा स्थिरा भवेत् । अर्थात नोच मनुष्य की मनोवृत्ति कभी एक रूप नहीं रहती। वह सदा चंचल बनी रहती है।
बाचार्यों ने सममनोवृत्ति और विपममनोवृत्ति वाले मनुप्यों के स्वभाव का वर्णन करते हुए कहा है कि
'मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येक महात्मनाम् ।
मनस्यन्यवचस्यन्यत्कर्मण्यन्यद्धि पापिनाम् ।। अर्थात् जो सम मनोवृत्ति के धारक महात्मा होते हैं उनके मन में, वचन में और कर्म मे एक बात होती है। किन्तु विपम मनोवृत्ति वाले पापियों के मन में कुछ और होता है, वचन से कुछ और कहते हैं और कर्म में कुछ और ही होता है। ___इस विषम मनोवृत्ति वाला अपने एक रुपये के लिए दूसरे को पांच रुपयों का नुकसान पहुंचा देगा। अपने पांच सौ रुपये वसूल करने के लिए दूसरे को हजार रुपये की हानि पहुंचायगा। किन्तु जो सममनोवृत्ति के धारक होते हैं, वै जब देसते हैं कि मेरे पचास रुपयों के पीछे दूसरे का यदि सौ रुपयों का नुकसान हो रहा है, तो वे अपने पचास रुपये ही छोड़ देते हैं। वे सोचते हैं कि यदि इसके पास से मेरे पचास हपये नहीं आयेंगे तो मेरे क्या कमी हो जायगी। पर यदि इसके सौ रुपयों का नुकसान हो जायगा तो बेचारे के बालबच्चे भूखों मर जावेंगे। इस प्रकार समधारा वाले के हृदय में करुणा की धारा सदा प्रवाहित रहती है। ऐसे पुरुप स्वयं हानि उठाकर के भी दूसरों को लाभ पहुंचाते रहते हैं । उनकी सदा बही भावना रहती है--
अहंकार का भाव न रखें, नहीं किसी पर क्रोध करू, देख दूसरों की बढ़ती को, कभी न ईयों भाव धरूं। रहे भावना ऐसी मेरी, सरल सत्य व्यवहार करूं,
बने जहां तक इस जीवन में ओरों का उपकार करूं ॥ सज्जनों की तो भावना ही सदा ऐसी रहती है कि भले ही मुझे दुःख उठाना पड़े, तो उठा लूंगा, परन्तु मेरे निमित्त से किसी दूसरे व्यक्ति को रच