________________
वाणी का विवेक
इन छह बातों में मनुष्य लघुता को प्राप्त होता है-प्रथम यह है कि जो मनुष्य वालकों के साथ मित्रता करता है । जो अपनी उम्र में, आचार-विचार में और जाति में हीन है, ऐसे पुरुष के साथ मित्रता या संगत करने पर मनुष्य अपमान को पाता है। यदि हमें अपने कार्य में दो-चार घंटे का अवकाश मिले तो अपने से अधिक उत्तम आचार-विचार वाले और सिद्धान्त के जानकार लोगों के पास उठना-बैठना चाहिए । यह देख करके दूसरे लोग भी कहेंगे कि वह भली संगति करता है । नीतकार कहते हैं कि
बाल से आल, वुढ्डे से विरोध, कुलच्छन नारि से न हंसिये।
ओछे की प्रीति गुलाम की संगत, अघट घाट में न धंसिये ॥ इसलिए बालक के साथ मित्रता अच्छी नहीं है। वृद्धो से विरोध भी अच्छा नहीं है । कुलक्षण व्यभिचारिणी स्त्री के साथ हंसना भी उचित नहीं । ओछे पुरुप की प्रीति और गुलाम की संगति भी अच्छी नहीं और जिस नदीतालाव आदि के घाट की गहराई बादि का पता नहीं हो तो उसमें भी नहीं घुसना चाहिए। -
अपमान का दूसरा उदाहरण है अकारण हंसना । कोई हंसी की बात आ जाय तब तो हंसना ठीक है । मगर दस आदमियों के बीच में बैठे हुए यदि बिना किसी कारण के कोई हंसेगा तो वह अवश्य ही अपमान को प्राप्त होगा। अपमान का तीसरा कारण है स्त्रियों के साथ वाद-विवाद करना । मनुष्य यदि कहीं किसी स्त्री के साथ विवाद करता होगा तो दर्शक लोग उसे मूर्ख समझेगे और उसका तिरस्कार करेंगे। अपमान का चौथा कारण हे दुर्जन मनुष्य की सेवा करना । यदि कोई दुष्ट पुरुप की सेवा करता है, तो उसमें दुष्टता ही आयेगी और देखने वाले भी उसे दुष्ट समझकर उसका अपमान करेगे । अपमान का पाचवा कारण है गधे की सवारी करना। यदि कोई भला आदमी गधे पर सवार होकर बाजार में से निकले तो सभी उसका तिरस्कार करेंगे । अपमान का छठा कारण है संस्कार-रहित वाणी का बोलना । जो गंवारू या ग्रामीण भाषा बोलते हैं, वे अपमान पाते है । इस प्रकार उक्त बातों से मनुष्य अपमान को प्राप्त होता है। यदि हमें अपमान से बचना है तो उक्त पांच कारणों के साथ असंस्कृत या असभ्य बचन बोलने से भी बचना चाहिए । जो वुद्धिमान होते है, वे थोड़े से ही हित-मित प्रिय वचनों के द्वारा अपनी बात कह देते हैं और सुननेवाले उसकी बात को सुनकर प्रसन्न होते हैं और उसे स्वीकार करते हैं । देखो-अच्छा वकील, वैरिस्टर या सोलीसीटर दो चार वाक्य ही जज के सामने रखता है और जज उसके अनुसार अपना फैसला दे देता है । जो भापा के विद्वान होते हैं वे थोड़े से शब्दों में ही अपनी सारी बात