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वाणी का विवेक
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भाइयो, जिस व्यक्ति की भापा शुद्ध और सुन्दर है उसे सुन्दर वस्त्र आभूपण पहिन कर अपनी शोभा दिखाने की आवश्यकता नहीं है। हमारे साहित्यकारो ने कहा है कि 'वाग्भूषणं भूषणम्' अर्थात् सुन्दर वचन ही श्रेष्ठ आभूपण हैं। मनुष्य की प्रतिष्ठा वचन के द्वारा ही बढ़ती है। जैन आगमो मे भापा के विषय में अनेक बडे-बडे सूत्र हैं। सबसे छोटा दशवकालिकसून जो मुनियो के आचार गोचरी का खजाना है---उसके सातवें अध्ययन मे स्वतन्त्र रूप से मापाशुद्धि पर प्रकाश डाला गया है। जिसके वचनो की शुद्धि है, वह महान् पुरुष है। और जिसे भापा का भी ज्ञान नहीं है उसको माधुपना भी नहीं कल्पता है। भापा की अशुद्धि से कभी-कभी भारी अनर्थ हो जाता है।
अनों की जननी भाषा को अशुद्धि आज से कुछ समय पूर्व की बात है । आपके पास में यह जो विसलपुर गाव है, वहा पर पहिले ओसवाल जैनियो के चार सौ घर थे। आज तो चार-पाच ही घर है। पहिले वहा पर तीन स्थानक थे और व्याख्यान भी तीनो स्थानो पर होते थे। शोभाचन्द्रजी महाराज के अनुयायी लोगो का जो धर्मस्थान था, वहा पर पाच-दस सामायिक प्रतिदिन होती थी। वहा पर एक सन्त आये उनका आचार अच्छा था, देखने में व्यक्तित्व भी प्रभावक था और पढ़े-लिखे भी ठीक थे। वहा के श्रावको ने उनकी समुचित सेवा भक्ति की। इस प्रकार