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________________ प्रवचन-सुधा पर चढ़ गया, पर माफी नहीं मांगी । अन्त में सत्य की विजय हुई और शूली का सिंहासन हो गया। आज आप जो अमरसिंह और वोरसिंह की कथा सुन रहे है उसमें भी आया कि वे माफी मांग लें । परन्तु उन्होंने कहा कि माफी कैसे मांग लेवें ? यद्यपि उन्हें वाप से ही मांगनी थी। पर बाप हो या और कोई हो । जब गलती की ही नहीं तो माफी क्यों मांगे। परन्तु जिसने गलती की, तभी तो हजारों के सामने उसे मंजूर किया । इस प्रकार से माफी मांगने वाला तो सारी रामायणकार का गुनहगार हो गया। आज जैसे उस जब्त हुई पुस्तक को लेकर उनके लिए सवाल खड़ा हुआ है, वैसे ही कल दूसरों के लिए क्यों नही खड़ा होगा ? इस प्रकार से तो इतिहास के पन्ने ही खराब हो गये । जो इतिहास की बातें हैं उनके विषय में हमें कुछ भी कहने का हक नहीं है । ऐसे समय तो यही कहना चाहिए कि विवाद-ग्रस्त पुस्तक विद्वानों के सामने रख दो । वे जो निर्णय देगे, वही मान्य करेगे । जिसके भीतर धार्मिक द्वेप नही होगा और निष्कपट भाव होगा वही सत्य निर्णय होगा । आज का विपय यह है कि हमें सदा शुद्ध, पवित्र और उदार विचार रखना चाहिए, क्योकि उत्तम व उदार विचारवाले ही संसार में कुछ काम कर सकते हैं। वि० स० २०२७ कार्तिक वदी ४ जोधपुर
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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