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________________ पाँचवाँ अध्ययन काम - सकाम मरण. महोघ, दुस्तर अर्णव से तिर गये कई मानव यतिमान | उनमें एक महान प्राज्ञ ने ऐसा स्पष्ट किया फरमान || १ || ज्ञातृ-पुत्र ने दो प्रकार से मरण कहा है यहाँ यथा । पहला मरण सकाम दूसरा मरण अकाम प्रसिद्ध तथा || २ || बाल- जनो का मरण अकाम यहां श्रनेकधा होता है । मरण सकाम पंडितो का उत्कृष्ट एकधा होता है ||३|| महावीर स्वामी ने यहाँ कहा उनमे यह पहला स्थान । काम -गृद्ध होकर प्रति क्रूर कर्म करता है वह नादान ||४|| पर-भव को देखा न, किन्तु यह चक्षु दृष्ट है काम - रति । कामासक्त मनुज की हो जाती असत्य की ओर गति ॥ ५ ॥ काम हस्तगत यहा हमारे आगे ये हैं संशय युक्त । कौन जानता पर भव है या नही अत ये है उपयुक्त || ६ || ? मैं भी सब लोगो के साथ रहूगा यों कहता प्रज्ञेश । काम - भोग मे रक्त बना वह पाता नाना विघ सक्लेश ॥७॥ अत कठोर दंड त्रस स्थावर जीवो को वह देता है । अर्थ, अनर्थ प्राणियो की हिसा मे भी रस लेता है ॥ ८ ॥ हिंसक, अलीक -भाषी, बाल, पिशुन, शठ तथा मनुज मायी । सुरा मास को खाता है फिर इन्हे समझता सुखदायी ॥ ६ ॥ काय-वचन-उन्मत्त, वित्त- मूच्छित स्त्री-लोलुप दोनों प्रोर । ज्यो शिशुनाग, मृत्तिका को त्यों सचित करता कर्म कठोर ॥ १०॥ , तत रोग से स्पृष्ट ग्लान वह पीडित हो दुख पाता है । फिर निज कृत कर्मों को स्मर के पर-भव से भय खाता है ॥ ११॥ सुने नरक के स्थान प्रशीलो की गति मैंने सुनी यहाँ । क्रूर कर्म वाले अज्ञानी, पाते दुःख प्रगाढ जहाँ ॥ १२ ॥
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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