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दशवकालिक
निपेधित या दत्त वे जब चले जाएँ लोटकर।
अशन-पानी के लिए जाए वहाँ संयत-प्रवर ॥१३॥ पद्म उत्पल कुमुद अथवा मालती के सुमन को।
तथा अन्य सचित्त सुम को छेदकर दे श्रमण को ।।१४।। संयतो को पान-भोजन वह अकल्पिक सर्वथा।
कहे देती हुई से-ऐसा न मुझको कल्पता ।।१५।। पद्म उत्पल कुमुद अथवा मालती के सुमन को।
तथा अन्य सचित्त सुम को कुचलकर दे श्रमण को ।।१६।। संयतो को पान-भोजन वह अकल्पिक सर्वथा।
कहे देती हुई से-ऐसा न मुझको कल्पता ॥१७॥ कमल-कंद पलाश-कद व कुमुद उत्पल-नालिका।
पद्म-नाल व इक्षुखण्ड सचित्त सर्षप-नालिका ॥१८॥ वृक्ष तृण या अन्य हरितो के तरुण पत्ते कहे।
___ कोपलें कच्ची सभी तज सुव्रती सयम बहे ।।१६।। तरुण मूगादिक फली कच्ची व भूनी अर्ध हो ।
कहे देती हुई से–यो कल्पता न मुझे अहो ॥२०॥ तथा कोल' अनुष्ण वेणुक' नालिका' काश्यप कही। .
तजे तिल-पपड़ी अपक्व कदम्ब फल को ले नही ॥२१॥ शालि-पिष्ट व अर्ध-तप्त सचित्त जल उस भांति ही।
पोदकी, तिल-पिष्ट, सर्पप-खल सचित्तन ले कही ॥२२॥ विजौरा व कपित्थ फल मूले व उसके खण्ड हो।
शस्त्र-परिणति बिना कच्चे न इच्छे मन से अहो ॥२३॥ बहेड़ा व प्रियाल फल, फल चूर्ण बीजो का तथा ।
__ जानकर कच्चे उन्हे मुनि छोड देता सर्वथा ॥२४॥ सामुदायिक बडे-छोटे कुलो मे भिक्षा करे।
लाँघ छोटे कुल नही उच्छृत कुलो मे संचरे ॥२५॥ दीनता तज वृत्ति खोजे नही खेद करे कृती।
गृद्ध भोजन मे नही, मात्रज्ञ एषण-रत मति ॥२६॥
१ बेर, जो उवला हुआ न हो । २ वश करीर । ३ काश्यप-नालिका । ४ पाईसाग ।