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________________ म०-२३ : केशी-गीतमीय १४१ भीम, साहसिक, दुष्ट अश्व यह गौतम । दौड़ रहा है सत्वर । - उस पर चढे हुए हो, क्यो न तुम्हे ले जाता वह उत्पथ पर ?॥५॥ हुए भागते को मैं उसे वाँध कर श्रुत-लगाम से रखता। .. अत न उत्पथ पर चलता वह नित्य सुपथ पर है संचरता ॥५६॥ केशी ने गौतम से पूछा कहा गया है अश्व किसे? केशी के कहते-कहते ही गौतम यो बोले फिर से ॥५७॥ भीम, साहसिक, दुप्ट अश्व मन, दोड़ रहा है इसे शीघ्रतर । . . सम्यक् निज अधीन रखता, हो गया धर्म-शिक्षा से हय वर ॥५८॥ उत्तम प्रज्ञा तेरी गौतम । दूर किया मेरा यह सशय । .. एक अपर सशय के बारे मे भी बतलाओ करुणामय । ॥५६॥॥ कुपथ बहुत हैं जग मे जिनपर पथिक भटक जाते है गौतम | '. पथ पर चलते हुए यहाँ फिर कैसे नही भटकते हो तुम ॥६०॥ सत्पथ उत्पथ पर चलने वाले मेरे को सर्व, ज्ञात है। - .., इसीलिये हे मुने | मैं नही भटक रहा हू सही बात है ॥६१।। केशी ने गौतम से पूछा, कहा गया- है मार्ग -किसे ? - . . केशी के,, कहते-कहते- ही, यो गौतम बोले फिर, से ।।६२।। कुप्रवचन के जो कि व्रती है वे सव उत्पथ पर प्रस्थित हैं। .. 'जिनाख्यात ही पथ सत्पथ है क्योकि वही सर्वोत्तम पथ है ॥६३।। उत्तम प्रज्ञा तेरी गौतम । दूर किया यह मेरा संशय। - . 1; एक अपर सशय के बारे मे भी बतलाओ करुणामय | ॥६४॥ जल के महावेग मे - वहते हुए प्राणियो के खातिर। मुने । शरण, गति, द्वीप, प्रतिष्ठा किसे मानते हो तुम फिर ?॥६॥ लम्बा-चौडा · महाद्वीप है एक सलिल के बीच यहाँ। , इस महान जल-प्रवाह की गति स्वल्प मात्र नही जहाँ ॥६६।। केशी ने गौतम से पूछा, कहा गया है द्वीप किसे ?. , केशी के कहते-कहते ही गौतम यो बोले फिर से ॥६७॥ जरा-मरण के महावेग से बहते हुए प्राणियो के हित। - :. उत्तम शरण प्रतिष्ठा गतिमय धर्म द्वीप है एक सुरक्षित ॥६॥
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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