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________________ अ० ११ : बहुश्रुत पूजा ___६३ तरु सुदर्शना नामक जम्बू देव अनादृत का आश्रय जो । सब तरुओ मे ज्योकि श्रेष्ठ है, बहुश्रुत भी सब मुनियों मे त्यो ॥२७॥ नोलवन्त से निकल सिन्ध मे मिलनेवाली नदी प्रवर । सब नदियो मे सीता ज्योकि श्रेष्ठ है त्यो बहुश्रुत मुनिवर ॥२८॥ नाना औषधि दीप्त तथा अतिशय महान गिरि है मंदर। , सब गिरियो मे उत्तम त्यो सब मुनियो मे बहुश्रुत मुनिवर ॥२६॥ नाना रत्नो से परिपूर्ण स्वयभूरमण नाम सागर । - उदधि-श्रेष्ठ अक्षय-जल है त्यो अक्षय श्रुत से बहुश्रुत-धर ॥३०॥ अपराजेय, दुरासद, त्राता, अभय व सिन्धुतुल्य गम्भीर। विपुल ज्ञान से पूर्ण खपा कर्मों को गए मोक्ष मे धीर ॥३१॥ उत्तम अर्थ-गवेषक श्रुत को करे आश्रयण अत. उम्र-भर । जिससे निज-पर को वह सिद्धि-प्राप्ति झट करा सके बहुश्रुत-धर ॥३२॥
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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