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________________ ० १० : द्रमपतंक पचेन्द्रिय गत जीव वहाँ ज्यादा से ज्यादा रहे अगर । सात-आठ जन्मो तक, अत. न कर प्रमाद गौतम ! क्षण-भर || १३|| देव-नरक -गति - गत प्राणी अधिकाधिक रहता वहाँ अगर । एक-एक भव ग्रहण मात्र, मत कर प्रमाद गौतम ! क्षण-भर ॥ १४ ॥ यों भव- ससृति मे सचरता कर्म शुभाशुभ सचित कर । जीव प्रमाद-बहुल है, अत न कर प्रमाद गौतम ! क्षण-भर ||१५|| पा मनुजत्व, तथा फिर आर्य देश का मिलना अति दुष्कर । बहु नर चोर म्लेच्छ है, अत न कर प्रमाद गौतम | क्षण-भर ॥ १६ ॥ पा आर्यत्व तथा फिर अहीन पचेन्द्रियता दुर्लभतर । इन्द्रियहीन वहुत हैं, अत न कर प्रमाद गौतम ! क्षण-भर ॥ १७॥ अहीन पचेन्द्रियता पा फिर उत्तम धर्म-श्रवण दुष्कर | कुतीर्थ सेवक बहुजन है, मत कर प्रमाद गौणम ! क्षण-भर ॥ १८ ॥ उत्तम श्रुति मिलने पर भी श्रद्धा का होना दुर्लभतर । · मिथ्यात्वोपासक जन है, मत कर प्रमाद गौतम ! क्षण-भर ॥ १६ ॥ धार्मिक श्रद्धा पा फिर धर्म निभानेवाले दुर्लभ नर । काम -गृद्ध बहुजन है, अत न कर प्रमाद गौतम ! क्षण-भर ||२०|| जीर्ण रहा तन तेरा फिर धवल हो रहे केश - निकर । वह घट रहा श्रोत्र-बल, अत न कर प्रमाद ! गौतम क्षण भर ॥ २१॥ जीर्ण हो रहा तन तेरा फिर धवल हो रहे केश - निकर । वह घंट रहा चक्षु-बल अत, न कर प्रमाद गौतम ! क्षण-भर ॥ २२ ॥ जीर्ण हो रहा तन तेरा फिर धवल हो रहे केश निकर t f J वह घट रहा घ्राण बल, अत. न कर प्रमाद गौतम | क्षण-भर ||२३|| दर्द " - " जीर्ण हो रहा तन तेरा फिर धवल हो रहे केश - निकर । वह घट रहा जीभ-बल, अत न कर प्रमाद गौतम | क्षण-भर ॥ २४ ॥ जीर्ण हो रहा तन तेरा फिर घवल हो रहे केश - निकर । वह घट रहा स्पर्श-बल, अत न कर प्रमाद गौतम ! क्षण-भर ||२५|| जीर्ण हो रहा तन तेरा फिर धवल हो रहे केश - निकर । वह घट रहा, सर्व बल, अत. न कर प्रमाद गौतम ! क्षण-भर ॥ २६ ॥
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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