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संणतुकुमारचरित
[६१८]
धुय सुनंदा नाम हउँ अन्नदियहम्मि उ मह जणय- पयहं पुरउ संपत्त-मेत्तिण । एगयरिण दूयगिण नमिर-सिरिण विष्णत्तु जत्तिण ॥ जह - गयउर-नयर-प्पहुहु आससेण-निवइस्सु । निज्जिय-भुवण-नियंविणिहि सहदेविहि दइयस्सु ॥
अस्थि नंदणु भवण-अब्भहियचक्काहिव-सिरि-तरुणि- रमणु अतणु-गुण-रयण-सायरु । सोहग्गिय-सिरि-तिलड रिउ-मर-घट्टण-कयायरु ॥ पुण्णिम-ससि व समग्गहं वि विमल-कलाहं निहाणु। रूविण जसिण जयब्भहिउ - सणतुकुमारभिहाणु ॥
[६२०]
इय सुणंदह जइ न संबंधु नर-रयणिण तेण सह हवइ विहिण ता नूण हारिउ । मह जणएण तयणु नणु जुत्तु एहु इय संपधारिउ ॥ आससेण-नरवइ-पुरउ स-वलिण गच्छंतेण ।... निय हउँ सिरि-गयउर-नयरि हरिसु पयासंतेण ॥ . ".
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अन्न-अवसरि सहिहिं परियरिय कंदप्प-पूयण-विहिण गइय आसि हउं नयर-काणणि । ता मयणह पयडह जि विहिय पूय मई हसिरि सहियणि ॥ तयणंतरु निय-घरि गइय केण-वि विहिहि वसेण । अइव-दुरंतिण उप्परिण हउं गहीय दोसेण ॥ ६१९. ३. अनणु. ६२१. १. वसरि. २. क. पूइण. ६२२. ३. क. कहकचि.