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[६१०] * अह सु विहिउ
पंचास विइ मुणिरु ता निसुण मिउ- महर -
सणतुकुमारचरिउ
जह - जय पणय-मणिच्छियरि कमल - गन्भ-गोरंगि । रिउ नासण - सव्वंगि ॥
न मिरामर - नर-नायगहं
[६११]
हूं खुदुरियहं हरणि ओं ह्रीं हि
जत्थ सउ तत्थ सणिउ सणिउ धवलहरि पविसह । रविण लविर तिय इग महासर ||
संपाइय-इ-फलि फट्कारिण हणिय-रिउजे तुह भत्तिहिं पय नमहिं
खग्ग-गुलिय- अंजणु साहणि सेणि पणय - आनंद- कारिणि जोगेसरि तुहुं तेसि |
fare अगोरु सिविहं वि फलु असरिसु वियरेसि ॥
चिंतामणि देवि मह
[६१२]
इय पसीयसि किं न पण इ-यण
तसु दइयह मुह-कमलनियय-अवत्थ सम-गुणहं किं जुज्जर अंतर- करणु
हिययंतर उल्लसिय हुं हुं एस विक वितरुणि मग्गइ गोरिहि पय- पुरउ अइ-दुल्लभउको विउ
गरुय-विषय-पणमंत- अंगह | दंसणेण दुल्लंभ-संगह ॥ निच्चु वि विणय-पराहं । निय-जणणी-जणयाहं ॥
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अह विसेसिण कुमरु सुमरंतु
पुत्र- दिट्ठ हरिणच्छि सु-चरिय । फुरिय-गरुय अणुराय - विहरिय || पत्त दसम - दस- काल | एहि मई व सावाल ॥
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* The text of stanzas 610 611, 612, 613, 614, 615, and
616 in क is mostly blurred and illegible.