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सिरि-हरिभद्द-सूरि-विरइय
नेमिनाहचरियंतग्गउ सण तु कु मा र च रि उ
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[४४४]
मलय-गिरि-वण-कैस-पासाए उत्तुंग-सुर-गिरि-सिहर- उत्तिमंग-संपत्त-कित्तिहि । ससि-दिणयर-लोयणिहि तार-सेणि-सिय-दंत-पंतिहि ।। हिमगिरि-विझ-गिरिंद-थिर- थोर-त्थण-जुयलाए । कालिंदी-सरि-सलिल-भर- रोमावलि-कलियाए ।
[४४५] ... सुर-तरंगिणि-पुलिण-जहणाए रयणायर-अंवरहि पुहइ-वहुहु संजणिय-मंडणि । निय-मंदर-गिरि-फुरिय- सेस-दीव-माहप्प-खंडणि ॥ नग-नगरागर-गाम-सरि- विसय-सहस्स-समिद्धि । जंव दीवि महंति तहिं भरह-क्खित्ति पसिद्धि ॥
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