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[ परिशिष्टम् ] हरिभद्रसूरि - विरचित - प्राकृतभाषानिवद्धमल्लिनाथचरितान्तर्गत' सनत्कुमार चक्रवर्ति- कथानकम्
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दीवे
भारहवा सस्स
जंबुद्दो नाणाविह मणि मंदिर- भित्ति पर उत्तंग- साल - सिहरा रोहंत-खलंत-रवि-रह तुरंग पाया लोयर - गंभीर-फरिह-सोहंत- पेरंतं
झ-खंड |
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हामिय-तमोहं
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सिरि गयउर - अभिहाणं जय-पयडं पुरमहेसि तत्थ पुणो जिय-सेस सत्तु - विसरो राया सिरि-आससेणो त्ति तस्स य सयलंतेउर-पवरा निस्सीम - सीम-कुल-सवणं । सिवदेवि त्ति पसिद्धा अहेसि दइया जयब्भहिया || ते तु रूव विवो वह सिय-तयलोय लोय-तणु सोहो चउदसहि महा-सिविणेहि सूइओ नंदणो जाओ || वियरियमभिहाणं से दिणे पसत्ये सणकुमारोति । अह सो कम- संपाविय तारुण्णो अहिगय-कलो य 11 सह-पंसु - की लिएणं वाल - [व] यंसेण गुण - रयण-निहिणा । सुराभिहाण-नरवइ-कालिंदी - देवी - तणण ||
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सम- सुह-दुक्खेण महिंदसीह-नामेण समगमुज्जाणे । कीलण - कए पहुत्तो सणकुमारो स-परिवारो 11 तत्थ य विविहेयर कलाहिं परिकीलिऊण खणमेगं । कुमरो : जलनिहिकल्लोल-नामयं
तुरयमारूढो 11 इयरे वि निव कुमारा समाण - वय - रूव विह [व] संपन्ना | तस्समयं विवि तुरंग - रयणेसु
आरूढा
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