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________________ सनत्कुमारचरित एटले निर्मळ दांतनी किराणावलिथी सर्व दिशोएने श्वेत बनावती चंद्रवदना विमलमति कहेवा लागी, “कुमार, तुं तारा मित्रनो वृत्तांत हवे सांभळ. ते वेळा तमारी सामे ज ए उत्तम अश्व आर्यपुत्रने हरी गयो अने क्षणवारमां ज तेने अहीं नाख्यो (५६८) – आ यमसदन समा घोर अरण्यमां, ज्यां पशुओ त्रासे छे, वाघ पण डरे छे, गिरिशिखरो तूटी पडे छे, घोडाओ भटके छे, हाथीओ नासभाग करे छे, भीललोको पण विलाप करे छे, उज्जड बनेलां वृक्षो तूटी पडे छे, हजारो वांस फूटे छे, ज्यां कायर लोको निश्चेतन बनी जाय छे अने दावानळ सळग्या करे छे. (५६९). एटले, 'घोडो केटलेक जशे ?' एम विचारीने ए श्री अश्वसेनना कुलगगनना चंद्रे घोडाने छूटो मूकेलो, तेथी हवे लांबा श्वासो मुकतो ते अडधी क्षण त्यां ऊभो रह्यो 'रे ! धिक्कार छे मने के आ घोडो ऊलटी तालीम पामेलो होवानुं हुं कळी न शक्यो' एम अतिशय खिन्न बनीने विचारतो ते उत्तम कुमार, जेवो पोताने हाथे ते उत्तम अश्वनुं चोकहुं ढीलुं करे छे, त्यां तो तरत ज धरती पर अतिशय भ्रमण करवाथी श्वास अने थाकथी भांगी पडेलो ते नीचे पड्यो अने यमसदन पहोंची गयो. एटले घणाघणा दुःखे तप्त शरीरे ए अश्वसेननो राजपुत्र, भूखतरसथी क्लान्त अने विषादभर्यो, जेवो एक हजारो पर्णघटायुक्त शाखा वाळा सप्तच्छद वृक्षनी नीचे आवी पहोंच्यो तेवो ज ते, सूर्यनो ताप आ पहेला कदी न अनुभव्यो होईने, दैवयोगे अर्घ क्षणमा ज मूर्छाविकळ बनीने असहायपणे पड्यो, ते ज क्षणे सनत्कुमारने आवी दशामां जोईने, जगतमां सौने टपी जाय तेवा रूपवैभव वाळा, ऊगती जुवानी वाळा, शरीरे सुंदर शणगार सजेला, सर्वोकृष्ट औचित्यबुद्धि धरावता, अमृतमधुर अने मृदु वाणीथी शोभता, जाणे के आर्यपुत्रना पुण्यपुंजथी खेंचाईने आवेला एवा कोई एक पुरुषे मानससरोवरमांथी पोताने हाथे जळ आणीने आदरपूर्वक कुमारना सर्वांगे सींच्युं, एटले भानमां आवेला कुमारे जळ पीने कघुं, “भद्र, तुं कोण छे ? कचांथी आव्यो ? शा माटे ते परोपकार करीने चंद्रकिरण जेवुं निर्मळ अने अमृतमधुर आ पाणी लावी, पाईने मने जिवाड्यो ?" (५७० - ५७४ ). एटले पेलाए कयुं, "हे नररत्न, मारी ओळखाण सांभळ: हुं कमलाक्ष नामे जाणीतो यक्ष, पथिकोना तापहर एवा आ रम्य वृक्ष उपर वसुं कुं. जगतमां उत्तम एवा तारी आवी विषम अवस्था जोईने में मानससरोवरनुं जळ लावीने तने स्वस्थ कर्यो. " (५७५). एटले कुमार फरी बोल्यो, “मारा शरीरमां प्रलयाग्निना दाह समी बळतरा प्रसरी छे. ए शारीरिक संताप तो अने त्यारे जं शमे ज्यारे हुं सर्वांगे जलांजलि १०६
SR No.010685
Book TitleSantukumar Chariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages197
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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