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________________ १०० सनत्कुमारचरित पान पण नोरस, चंदननो रस पण अतिशय उष्ण, मलयपवन पण शरीरनो दाहक, चंद्रनां किरणो अडायानी आगथी पण बदतर अने मोतीना हार तरवारथी पण वधु तीक्ष्ण बनी गयां हतां (५२२). पण हवे त्रिभुवनना तिलक समा तारा देहसंगरूपी अमृतरसना प्रवाहथी सींचायेला मने, बीजी वधी सुंदरीओना साथ विना पण एनी ए वधी चीजो परम सुखप्रद लागे छे. तो हे विशालाक्षी, तुं तारी स्नेहपूर्ण दृष्टिथी मारो सत्कार कर, अने मारा उपर तलना फोतराना त्रीजा भाग जेटलो पण रोप न करीश." (५२३). एटले 'मारा प्रेमीनो वेश पहेरेली आ मारी सखी ज छे' ए प्रमाणे निःशकपणे धारती, कामने उद्दीपित करनारी ते बाळाने पोताना अंकमां स्थापीने, हाथ वडे जधन, स्तन ने मुखर्नु पूरेपूरु स्पर्शसुख पामीने, सर्वागे आलिंगीने कुमारे तेने स्नेहपूर्वक वाम लोचन उपर निर्भर चुंबन कयु. (५२४). ते वेळा तेना पिता तरफथी मोकलायेलो कोई विशिष्ट पुरुष उतावळे तेनी नजीकमां आवी पहोंच्यो, अने अत्यंत हर्पथी रोमांचित शरीर वाळो ते गभीर स्वरे सूरराजाना कुमार (महेंद्रसिंहने) कहेवा लाग्यो, “महाराजाए कुमारनी पासे मने मोकल्यो एटले हुं आपनी समक्ष उपस्थित थयो र्छ. (५२५). जेना चरणमां चोल अने सिंहलना राजाओ नमे छे, जे चेदिराजने चिंतानुं कारण छे, जेणे कलिंग, वंग अने अंगना राजाओने जीत्या छ, लाटनो राजा जेनी सेवा करे छे, जे साची राजनीतिनो सलाहकार छे एवो कुमारभृत्य भोजराजनो पुत्र वीजा राजवीओ सहित राजमहेलमा आवी पहोंच्यो छे.” (५२६). ए प्रमाणे सांभळीने कुमार जेमतेम करीने कदळीमंडपमांथी ज्यां बहार नीकळतो हतो, त्यां ते भोजराजानो पुत्र पोते ज तेनी पासे आवी पहोंच्यो, अने तेणे नमीने कुमारने एक जगविख्यात अश्वरत्न भेट धयु. ते अश्व जलधिकल्लोल नामे जाणीतो हतो, उत्तम लक्षणो वाळो, अतिचंचळ, अने आखा भुवनमां गति करवामां सूर्यना रथना घोडाओने पण वेगमां जीती जाय तेवो हतो. (५२७). ऊंचाईमां ते एंशी आंगळ, विस्तारमा नव्वाणु अने लंबाईमां एक सो आठ हतो. कान, जानु अने ग्वरीनो विस्तार चार आंगळ हतो, तेनु उन्नत मस्तक बत्रीश हतु, भुजदंड वीश अन जंघा-सोळ आंगळ ह्ती. एन पीठनु माळा गूढ हतुं. (५२८). कान पातळा अने लांबा हता, कपाळ चोरस अने विस्तीर्ण हतुं. मुख कुटिल, कटग अने मांस वगरने हतुं. आंखो स्थिर अने सांकडी, नसकोगं चंचळ अने फाफडतां हता. तेना पहोंचा एकसरखा अनं सुघटित हता, पेट पातलु हतुं,
SR No.010685
Book TitleSantukumar Chariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages197
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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