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व्यायामशाळामां गयो हतो त्यारे तेने साक्षात् जुए छे. पोते स्नान बाद वस्त्रालंकारथी विभूषित थाय त्यारनी असाधारण कांति जोवा सनत्कुमार तेमने बोलावे छे. ते वेळा सनत्कुमारने जोईने आ थोडा समयमां पण तेनी शांखी पडेली कांतिथी देवो विषाद पामे छे, अने सनत्कुमारना पछवाथी मानवदेहनी सतत क्षीण थती कांति अवधिज्ञानथो तेमनी नजरमां आवी होवानुं जणावे छे. एटले वैराग्यभाव उत्पन्न थतां सनत्कुमार श्रमण बने छे. तेना शरीरमां अनेक रोगो उत्पन्न थाय छे, जे सनत्कुमार समताथी सहे छे. इंद्र वैद्यने रूपे आवी रोगनो उपचार करवानी तत्परता बतावे छे. खेलौषधिनी लब्धिने कारणे सनत्कुमार थूकथी शरीरनो एक भाग मसळोने तेने मूलना जेवो करी देखाडे छे, अने कहे छे के मटाडेला रोग फरीथी पण थाय छे कारण के ते कर्माधीन छे. माटे पोते एवो तपसंयमनो मार्ग लीधो छे, जेथी रोगो कदी पण फरी न थाय. रोग सही, समाघि मरणथी काळ करीने सनत्कुमार सनत्कुमारकल्पमां इंद्र बने छे. दिगंबर परंपरामां सनत्कुमारने सीधा निर्वाण पामता वर्णव्या छे, ज्यारे श्वेतांबर परंपरामां तेमनो सनत्कुमारकल्पमां जन्म थयानुं कर्तुं छे.
वहिं मां जे निमित्ते सनत्कुमारनुं चरित्र कह्यु छे ते सनत्कुमारनी अणमानीती राणी सुषेणानो (जे पछीना भवमां सुभूम चक्रवर्तीनी राणी पद्मश्री बनवानी हती तेनो) उल्लेख बीजे क्यांय नथी.
पणे आगळ जोईशुं तेम धवि०मां (संभवतः 'उपदेशमालाविवरण' उपरथी) ओपेला कथासारमा प्रथम वार सनत्कुमारनुं त्रणे घटकवालु विस्तृत चरित्र रजू थयु छे. आमांना त्रीजा घटकनी विगतो वहिं०मां जे आपेली छे ते ज' छे. मात्र इंद्रे सनत्कुमारनां रूपातिशयनी करेली वात गळे न ऊतरतां-तेमां अश्रद्धाथीदेवो सनत्कुमारने प्रत्यक्ष जोवा आवे छे, बीजी वार सनत्कुमारने जोतां तेनी कांति क्षीण थयेली अने शरीर अनेक रोगोथी घेरायेलं तेमने देखाय छे, अने औषधिलब्धिथी सनत्कुमार सडती आंगळोने 'तरुण दिवाकरना जेवी'. बनावी दे छे-एटलो विगतफेर छे.
.. .. .. . . .. . चम०मां पण त्रीजा घटकवाळो वृत्तांत उपर प्रमाणे ज छे. मात्र रोगोनी आपेली रीतसरनी यादी अने खेलौषधिलब्धिथी डाबा हाथनी तर्जनी 'सुवर्णवर्णा करी बताववानी बात पूरतो फरक छे. .