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नेमिनाहचरिउ
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अह सहाविय कंति पच्भारतारयालि स सहर - दिवायरु संधिबंध-व्यंग सुंदरु ||
कय-असरिस सिंगार - विहि परिहिय-देव- दुगुल्लु | निय परियण-सोहिल्ल ||
बंदि-विंद उरघुट्ट-जसु
अवहत्थिय-सुर-असुर
निम्माणय-कम्म-कय
[७५१] सन्च-अवसर विउल-अस्थाण
निय निउत्त- पुरिसेहि स-हरिए । तेर्हि एंति असरिसु ॥
वर-मंडवि उवविसिवि
सदावर चक्कड़
हरिसु वहता निय-मणिण किं पुण चक्कत्रइम्मि | सच्चवियम्मि विसेसवर विरइय-सिंगारम्भि |
[७५२]
अहह घिसि घिसि वि-रसु संसारु
एत्तिएव अंतरि इमेरिस । जणिय-वण-सुहिताव- पगरिस || लहु विहलिय-गुह छाय |
जमिस्तु वि नरवरह संजाय विसम दस इय परिचिंतिर तियस दु-वि भणिय नरिंदिण - तुम्हि किह दीसह हय-मुह-राय ||
[७५३]
अह पर्वपहि तियस चक्किद
किं न नियहि नियय-तणु तु मज्जण कालि गुन नए कि एड गर्णनि free after सिरसि
७२.८ क दिवस वि. दि.
जमिह आणि जो कंति-विवरु | एहि तय सहसन्ति नवम ॥ चिनिय नियन्तं जाय । बोटलियं पिवता ||
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