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[७४२]
अह पढंतिण बंदि - विंदेण
गायंतिर्हि गायणिहि किज्जतिर्हि मंगलिहि मम्गण-सयहं मणिच्छियइ चक्क - पहुहु नियट्टिय
नच्चिरेर्हि नड - नह - जल्लिहिं | अकंय-सुकय-जण-हियय - सल्लिहिं || वियरिज्जंतर दाणि | इय मज्जणय - विहाणि ॥
[७४३]
संख- सद्दिण मुणिय- मज्झण्ह
कारि भेरि-रविण
वसंत तूर - रवि नच्चणि - नड
सयलेहिं य अहिगारिहहिं खेय - विणोय-रएहिं ॥
वार - तरुणि कहियम्मि अवसर । सेवम्मि गच्छति निय-घरि ॥ निय निय-ठाण - गएहिं ।
[७४४]
लहु मिलतिहिं धामाणेहि
पडिसवणिय-माण विहिं परिसोहिज्जं तियहि अग्गासणियग-वंभणिहिं सज्जीकिज्जतेहिं । किविणाणाह-चणीमगंहं भत्तिर्हि दिज्जतेहिं ||
वज्जिरेहिं अवसरिय-संखिहिं । अतिहि सत्तसालहिं असंखिहिं ||
[७४५] वार - तरुणिहिं सारविज्जति
निव-भोयण - वेइयए भुंजय-जणि आगयइ तुरिउ चकोर - पंजरिर्हि वायस - पिंडिहिं तरु- सिहर - फलगि खिंविज्जंतेहि ॥
वेज्ज- मंत-वाइएहिं पहुत्तिहिं । वसदेव - आइहिं हुंतिहिं || संचारिज्जतेहिं |
७४२. २. क. गातिहि ; ४. क. किज्जतिहि. ९. इमय. ७४४ २. क. माणविहि. ९. क. भत्तिहि ख. भात्तहिं.
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