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करने के लिए भट्टोजि दीक्षित ने 'सिद्धान्तकौमुदी' ग्रन्थ रचा। सम्मृति समस्त .
भारतवर्ष में पाणिनीय व्याकरण का अध्ययन-अध्यापन इसी सिद्धान्त कौमुदी के
आधार पर प्रचलित है ।
मटोजि दीक्षित ने सिद्धान्त कौमुदी की रचना से पूर्व 'शब्द कौस्तुभ' लिखा था । यह पाणिनीय व्याकरण की सूत्रपाठानुसारी विस्तृत व्याख्या है ।
टोजि दीक्षित महाराष्ट्रिय ब्राह्मण है। इनके पिता का नाम लक्ष्मीधर था । पण्डित राज जगन्नाथ कृत प्रौद मनोरमा खण्डन से प्रतीत होता है कि मोजि दीक्षित ने नृसिंह पुत्र शेषकृष्ण से व्याकरण शास्त्र का अध्ययन किया था । मोजी दीक्षित ने भी 'शब्दकौस्तुभ' में प्रक्रियाप्रकाशकार शेषकृष्ण के लिए गुरु शब्द का व्यवहार किया है। दीक्षितजी का समय 1570 से 1650 के मध्य स्वीकार किया गया
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का खण्डन स्थान-स्थान पर किया
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cोजि दीक्षित ने स्वयं सिद्धान्त कौमुदी की व्याख्या लिखी है । यह 'प्रौद मनोरमा' के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें प्रक्रिया को मुदी और उसकी टीकाओं का खण्डन स्थान-स्थान पर किया है । दीक्षित जी ने 'यथोत्तरं मुनीनां प्रामाण्या पर बहुत बल दिया है। प्राचीन ग्रन्धका र अन्य वैयाकरणों के मतों का भी प्राय: संग्रह करते रहे हैं परन्तु मटीजि दीक्षित ने इस प्रक्रिया का सर्वथा इच्छेद कर दिया।
भोजि दीक्षित कृत 'प्रौढमनोरमा' पर उसके पौत्र हरि दीक्षित ने