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प्रायः रहा करते थे। इसी प्रकार के लघु-व्याख्यान रूप ग्रन्थ 'वृत्ति' शब्द से व्यवहृत होते हैं।
महाभाष्य के पश्चात #5cाध्यायी की जितनी वृत्तियाँ लिखी गई उनका मुख्य आधार पात जल महाभाष्य है । पत जलि ने पाणिनीयाष्टक की निदोषता सिद्ध करने के लिए जिस प्रकार अनेक सूत्रों वा सूत्रांशों का परिष्कार किया, उसी प्रकार उसने कतिपय सूत्रों की वृत्तियों का भी परिष्कार किया ।
RECTध्यायी पर अनेक वृत्तियाँ लिखी गई परन्तु उनमें काशिका वृत्ति का उल्लेख करना ही हमें अभीष्ट है अतः हम आगे उसका ही विवेचन करेंगे ।
का शिका
वमान समय में का शिका का जो संस्करण प्राप्त होता है उसमें प्रथम पाँच याय जयादित्य विरचित है और अन्तिम तीन अध्याय वामनकृत है । जिनेन्द्रबुद्धि ने अपनी न्यास-व्याख्या दोनों की सम्मिलित वृत्ति पर रची है। दोनों वृत्तियों का सम्मिश्रण क्यों और कम हुआ यह अज्ञात है । 'भाषावृत्ति' आदि में 'भागवृति' के जो उद्धरण उपलब्ध होते हैं, उनमें जयादित्य और वामन की सम्मिश्रित वृत्तियों का बडन उपलब्ध होता है । अतः यह सम्मिश्रण भागवृत्ति बनने । वि0सं0 6001 से पूर्व हो चुका था, यह निश्चित है । काशिका के व्याख्याता हरदत्त मिश्र और रामदेव मिश्र ने लिखा है -
का शिका देशतो भिधानम् , काशीषु भवा' |