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तो महाभाष्यकार की जन्मभूमि गोनदं होगी। पत जलि का समय लगभग 2000 वि0पू0 के बाद का तथा 1200 वि0पू0 के पहले का माना जाता है ।।
महाभाष्य व्याकरण शास्त्र का अत्यन्त प्रामाणिक ग्रन्थ है । समस्त पाणिनीय वैयाकरण महाभाष्य के सन्मुडा नतमस्तक हैं। महामुनि पत जलि के काल में पाणितीय और अन्य प्राचीन व्याकरण ग्रन्धों की महती ग्रन्थराशि विद्यमान थी। पत अलि ने पाणितीय व्याकरण के व्याख्यानमिष से महाभाष्य में उन समस्त ग्रन्थों का सारसंग्रहित कर दिया । महाभाष्य का सूक्ष्म पालोचन करने से विदित होता है कि यह ग्रन्थ केदल व्याकरणशास्त्र का ही प्रामाणिक ग्रन्थ नहीं है अपितु समस्त विद्याओं का आकार ग्रन्थ है । अतएव भर्तृहरि ने वाक्यपदीय 12/4861 में लिखा
कृते थ पत बालिना गुरुणा तीर्थदर्शिना । सर्वेषां न्यायबीजानां महाभाष्ये निबन्धने ॥
अSCLयायी के वृत्तिकार
पाणिनीय अष्टाध्यायी पर प्राचीन अवांचीन अनेक प्राचार्यों ने वृत्ति ग्रन लिखा हैं। पत बालि विरचित महाभाष्य के अवलोकन से ज्ञात होता है कि उसके पूर्व AScrध्यायी पर अनेक वृत्तियों की रचना हो चुकी थी। नागेशकृत 'उद्योत की धाया टीका' के आरम्भ में 'घडविधा व्याख्या' का निर्देश मिलता है । इन वचन से स्पष्ट है कि सूत्र ग्रन्थों के प्रारम्भिक व्याख्यानों में पदच्छेद, पदार्थ समास-विग्र अनुवृत्ति, वाक्ययोजना = अर्थ, उदाहरण, प्रत्युदाहरण, पूर्वपदा और समाधान ये अंश