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चाक्रवर्मण
चाक्रवर्मण आचार्य का नाम पाणिनीय अध्यायी तथा उणा दि सूत्रों में मिलता है । मcोजी दीक्षित ने शब्दकौस्तुभ में इसका एक मत उधृत किया है । श्रीपतिदत्त ने कातन्त्रपरिशिष्ट के 'हेतौ वा' सूत्र की वृत्ति में चाक्रवर्मण का उल्लेख किया है। इससे इसका व्याकरण प्रवक्तृत्व विस्पष्ट है । चाक्रवर्मग व्याकरण शास्त्र है - दय की सर्वनाम संज्ञा, नियतकाला: स्मृतयः का अप्रामाण्य आदि ।
भारद्वाज
भारद्वाज का उल्लेख/ पाणिनीय अष्टाध्यायी में केवल एक स्थान में मिलता है । Acाध्यायी 4/2/145 में भी भारद्वाज शब्द पाया जाता है परन्तु काशिका कार के मतानुसार वह भारद्वाज पद देशमाची है, आचार्यवाची नहीं। भारद्वाज का ट्याकरण विषयक मत तैत्तिरीय प्रातिमाहय 16/3 और मैत्रायणी प्रा तिवाय 2/5/6 में मिलता है। भारद्वाज व्याकरण शास्त्र है - भारद्वाज वार्तिक, आयुर्वेद संहिता; अर्थशास्त्र ।
शाकटायन
पाणिनि ने अष्टाध्यायी में आचार्य शाकटायन का उल्लेख तीन बार किया है । वाजसनेयी प्रातिशाख्य तथा अनामिाख्य में भी इसका अनेक स्थानों में निर्देश मिलता है । यास्काचार्य ने निरक्त में वैयाकरण शाकायन का मत उधत किया है । पत बलि ने स्पष्ट शब्दों में शाकटायन को व्याकरणशास्त्र का प्रवक्ता कहा है । उनके प्रमुभा व्याकरणास्त्र है - निरूक्त, कोष दैवत ग्रन्थ प्रकृतंत्र, लघु-अक्तंत्र, सामन्त्र आदि।