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इस का अर्थ है 'चतुरनडुह' शब्द को स्त्रीलिङ्ग में 'अाम्' होता है । अनुह' का उदाहरण - अनुडुडी, अनड्वाही। 'अनुदुह' शब्द से स्त्रीत्व विवक्षा में "जिदगौरादिभ्यश्च' इससे 'गौरादित्वात् डीप् प्रत्यय' तथा उक्त वार्तिक से विकल्प से 'आम्' । आम पक्षा में अनइवाही, आमभावपक्ष में अनुहुही ये दो प्रयोग बनते हैं । 'गौरा दिगण' में अनडुडी, अनवाही ये दोनों 'आमसहित, आमर हित पठित होंगे, उनके बन से ही यह 'आम्' विकल्प' विहित हो जायेगा, उसके लिए 'अामनडुहः स्त्रियां वा' इस अपूर्ववचन की आवश्यकता नहीं है। ऐसा न्यासकार का कथन है । 'गौरादिगण' में 'अनुह' इस प्रातिपदिक मात्र का पाठ ही आर्ष है। अनुडुट्टी, अनड्वाही' यह पाठ अर्वाचीन है ऐसा कैयट ने कहा ।
पाल कान्तान्न
'पुयोगादाख्यायाम्” इस सूत्र के भाष्य में 'गोपा लिकादीनां प्रतिषेधः ' यह वार्तिक पाठित है। जिसका अर्थ है 'गोपालिका' इत्यादि में पुंयोगादाख्यायाम' से 'डी' नहीं होता । अतः 'गोपाल कस्य' स्त्री 'गोपालिका' यही होता है यहाँ 'डीए' नहीं होता। 'गोपा लिकादीनाम्' में 'अादिशब्द' प्रकारवाची है । प्रकार का अर्थ है सादृश्य वह सादृश्य 'पाल कान्तत्वेन' ग्राह्य
1. यही वचन ज्ञापक है कि अनह शब्द से स्त्री लिड्ग में विकल्प से आम होता __ है - न्यासकार । 2. लघु सिद्धान्त कौमुदी, स्त्री प्रत्यय प्रकरणम्, पृष्ठ 1034. 3. अष्टाध्यायी 4/1/48.