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वचन से होती है “तथा च बृहस्पति - प्रतिपदाक्य त्वाल्लणस्याप्यव्यवस्था नात् तत्रापिस्खालि तदर्शनाद अवस्थाप्रसंगाच्च मरणान्तोव्याधिव्याकरणमिति औशनसा: - इति ।
महाभाष्य के व्याख्याकार भर्तृहरि एवं कैयट के मतानुसार बृहस्पति ने
शब्दपरायण नामक शब्दशास्त्र का प्रवचन इन्द्र के लिए किया था ।
बृहस्पति के पश्चात् इन्द्र को व्याकरणशास्त्र का प्रवक्ता स्वीकार किया गया है। इन्द्र के पिता प्रजापति को एवं माता अदिति बताया गया है । तैत्तिरीय संहिता 6/4/7 के प्रमाण के पूर्व भी यह बताया जा चुका था कि देवों की प्रार्थना पर देवराज इन्द्र ने सर्वप्रथम व्याकरणशास्त्र की रचना की । उससे पूर्व संस्कृत भाषा अव्याकृत-व्याकरण सम्बन्ध रहित थी । इन्द्र के प्रयास से ही वह व्याकृत एवम् व्याकरण युक्त हुई । अत: इन्द्र 'ने सर्वप्रथम प्रतिपद प्रकृति-प्रत्यय विभाग का विचार करके शब्दोपदेश की प्रक्रिया प्रचलित की। इन्द्र की प्रमुख रचना ऐन्द्र व्याकरण यद्यपि इस समय अनुपलब्ध है तथापि इसका सङ्केत अनेक रचनाओं का उल्लेख मिलता है । लइकावतार सूत्र' में ऐन्द्रशब्दशास्त्र सोमेश्वर सूरि लिखित यशास्तित क चम्मू में ऐन्द्र व्याकरण का स्पष्ट उल्लेख है 12
1. इन्द्रोऽपि महामते अनेकशास्त्र विदग्ध बुद्धिः स्वशास्त्र प्रणेता ---------
- टेक्निकल कसं आफ संस्कृत ग्रामर, पृष्ठ 280.
2. प्रथम आपवास, पृष्ठ १०..