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प्रकृति प्रत्यय विभागं सर्वत्राकरोत । अर्थात् “वाणी पुराकाल में अव्या कृत बोली जाती थी। देवों ने इन्द्र से कहा कि इस वाणी को व्याकृत करो। इन्द्र ने उत्त वाणी को मध्य से तोड़कर व्याकृत किया ।
महेश्वर सम्प्रदाय
व्याकरणशास्त्र में दो सम्प्रदाय प्रसिद्ध है । प्रथम रेन्द्र द्वितीय माहेश्वर या शैक्ष। कातन्त्र व्याकरण ऐन्द्र सम्प्रदाय का है, और पाणिनीय व्याकरण क्षेत्र सम्प्रदाय का । महाभारत के शान्तिपर्व के अन्तर्गत शिव सहस्रनाम में लिखा है - "वेदात् ष्ड्डूगान्युद्धत्य" । इससे स्पष्ट है कि बृहस्पति के समान शिव ने भी षड्डूग का प्रवचन किया था ।'
व्याकरण्मास्त्र के तीन विभाग
सम्पूर्ण व्याकरण्मास्त्र को तीन विभागों में विभाजित किया गया है - छन्दतमात्र - प्रातिमास्यादि । लौकिकमात्र - कातन्त्रादि । वैदिक लौकिक उभय विधि - आपिशाल, पाणिनि आदि ।
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इसमें लौकिक व्याकरण के जितने ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं, वे सब पाणिनि ते अर्वाचीन हैं।
1. निरूक्त i/20.