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पत्ये' सूत्र से 'लुक्' हो गया है । इससे 'परवल्लिङ्ग' का निषेध हो जाने से 'पर' पाब्द 'कपाल ' के 'नपुंसक' होने पर भी समाप्त में 'नपुंसक' नहीं होगा अपितु 'तद्वितार्थ' की अपेक्षा करके 'पुंल्लिद्ग' ही होगा। इसी प्रकार 'प्राप्तो जीवकां प्राप्तजीवकः, आपन्नो जीनकामापन्नजीवकः ' आदि में भी समास को 'स्त्री लिङग' नहीं हुआ । यहाँ पर 'प्राप्तापन्न च द्वितीयया '2 से समास होगा। इसी प्रकार 'अल कुमायें अलंकुमारि: ' यहाँ पर 'अलं' पूर्वक समास में भी 'परवल्लिङग' के द्वारा 'परकुमारी' शब्द के 'स्त्रीलिङग' में विद्यमान होने पर समास को 'पुल्लिङ्ग' हो गया है । इप्त ज्ञापन से ही यहाँ पर समाप्त होता है । इसी प्रकार 'निष्कौशाम्बी' इत्यादि में भी 'गति' समास होने पर भी 'परवल्लिद्ग' का निषेध हो जाने पर 'कौशाम्ब्या दि' शब्दों के 'स्त्रीलिङग' में विद्यमान होने पर भी समाप्त में 'यथायथं पुस् त्वा दिक' ही हुए हैं । यहाँ पर गति समास से 'कुगतिप्रादयः +5 से विहित 'प्रादि' समास को जानना चाहिए ।
यद्यपि भाष्यो क्त वार्तिक में द्विगु ग्रहण नहीं है । तथापि परवल्लिग' इस सूत्रस्थ वृत्ति के अनुरोध से 'एकविभक्तिचापूर्व निपाते" इति
1. AFटाध्यायी 4/2/16. 2. वही, 2/2/4. 3. वही, 2/2/18. 4. वही, 1/2/44.