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समाहारे चायमिष्यते
'नदीभ्यश्च 2 इस सूत्र के भाष्य में 'नदीभिः संख्यासमासेऽन्यापदार्थेप्रतिषेधः ' इस वार्तिक के प्रत्याख्यान प्रसङग में 'नदी भिः सख्याया: समाहारेड - व्ययीभावो वक्तव्य: ' इस भाष्य वाक्य का अनुवाद रूप है। यह वार्तिक 'समाहारे चाय मियते' वरदराज जी ने पढ़ा है। नदीभिः सूत्र से नदी वाची वाची शब्दों के साथ संख्या का अव्ययीभाव समास का विधान होता है । यह समास समाहार गम्यमान रहने पर होता है और फिर 'नदीपौर्णमास्याग्रहायणीभ्यः . इसके द्वारा पाक्षिक cच् और नपुंसक हो जाए । 'एकनदम्' और 'एकनदि' यह ही हो न कि एक नदी और यहाँ पर 'पूर्वकालैक्सर्वजरत्पुराणनव केवल T: समानाधिकरणेन " इस सूत्र से तत्पुरुष समास इष्ट है । 'नदीभ्याच' यह अव्ययीभाव समाहार में ही होता है । ऐसा न कहने पर 'पुरस्तादयवादात्तरान् विधीन् बाधन्ते नोत्तरगन् ' इस न्याय से अव्ययीभाव पूर्वकालैक इस समास को बाधेगा । 'एक नदी' यहाँ पर पूर्वकालैक यह समास न होता । अव्ययीभाव ही होता। इसलिए भाष्यकार ने कहा है - 'स चावश्य वक्तव्यः सर्वमेकनदीतीरे' यह सब प्रदीप में स्पष्ट है ।
I. लघु सिद्धान्त कौमुदी, अव्ययीभाव समास प्रकरणम्, पृष्ठ 829. 2. अष्टाध्यायी 2/1/20. 3. वही, 5/4/110. 4. वही, 2/1/49.