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प्रातिकाद् धात्वर्थे बहुल मिष्ठवच्च ।
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उक्त वाक्य गण सूत्र है, तथा चुरादिगण पठित है परन्तु विडम्बना यह
है कि, आजकल इसे वार्तिक माना जा रहा है । इसका अर्थ है कि प्रातिपदिक से धात्वर्थ में णि प्रत्यय होता है, और जैसे 'इठन्' प्रत्यय के परे रहते प्रातिपदिक को पुंवंद भाव, रभाव, टिलोप, विन्मतुलोप- यणादि लोप, प्र० स्थ स्फाध्यादेश, यसंज्ञा, इत्यादिक कार्य होते हैं, वैसे ही णिच् प्रत्यय से परे रहने पर प्रातिपदिक को होते हैं। जैसे- पटुमाचष्टे - पटयति ।
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पटु + णिच् टिलोप, धातु संज्ञा तथा त्तादिकर के 'पटयति यह रूप
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सम्पन्न हुआ । इसी प्रकार गोमन्तमाचष्टे, इति गवयति, यह प्रयोग 'मतुप् '
का लोप होकर सिद्ध होता है। अन्य उदाहरण स्पष्ट है ।
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