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को 'अट् द्विवचन होंगे । इस प्रकार बिना वार्तिक के ही स चस्कार समस्कात इत्यादियों में 'ककार' से 'सुद' सिद्ध है । अतः इन वार्त्तिकों को भाष्यकार ने प्रत्याख्यान कर दिए हैं ।
वृत्तिकार ने तो 'अभ्यास व्यवाये पि' यह सूत्र रूप में पढ़ा परन्तु भाष्य में इसे वार्त्तिक के रूप में देखे जाने के कारण, इसका सूत्र में वृत्तिकार ने प्रक्षेप किया है, ऐसा प्रतीत होता है । क्योंकि कैय्यूट के अनुसार 'अडभ्यासत्यवायेपि' इस सूत्र का पाठ न होने पर वार्तिक की प्रवृत्ति है । इसमें आचार्य नागेश भट्ट ने सूत्रपाठ स्वीकार किया है ।
सर्वप्रातिपदिकेभ्यः किब्वा वक्तव्यः
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उक्त सूत्र एवं भाष्य में 'आचारे वगल्भ 2 इत्यादि पूर्वोक्त वार्त्तिक उपक्रम कर के दूसरे ने कहा इस उक्ति सहित सर्वप्रातिपदिको से आचार 'क्विप्' कहना होगा । अश्वति, गदर्भात, इन दो प्रयोगों के लिए यह वार्त्तिक पढ़ा जाता है । इससे प्रातिपदिक मात्र से आचारार्थ में 'क्विप्' का विधान होगा। यह क्विप् प्रातिपदिक मात्र से होगा, न तो 'सुबन्त' से । अतः 'अश्वति' आदियों में 'पदान्त' का अभाव होने के कारण 'अतो गुणे' से पररूप होता है । यह 'सर्वेभ्य' यह कहने से ही सिद्ध रहा सर्वप्रातिपदिकेभ्य' इस उक्ति से प्रातिपदिकेभ्य' इस उक्ति से प्रातिपदिक ग्रहण से लब्ध होता है । 2
1. लघु सिद्धान्त कौमुदी, नामधातु प्रक्रिया, पृष्ठ 1014. 2. महाभाष्य प्रदीप