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नुमचिरं तृज्वद भावेभ्योनुद पूर्व विप्रतिषेधेन ।
'स्त्रियां च 2 इस सूत्र के भाष्य में यह वार्तिक पढ़ा गया है । 'इकोचिविभक्तौ ' इस सूत्र से प्राप्त नुम को 'अचिर प्रतx'' इस सूत्र से प्राप्त 'र' आदेश को 'विभाषातृतीयादिष्वचि' इस सूत्र से प्राप्त तन्वद भाव को 'नुद' पूर्वप्रतिषेधेन विप्रतिषेधन बाध लेता है । यह वार्तिक का अर्थ है । 'नुद' पहले पढ़ा गया है और 'नुमा दि' बाद में पढ़ा गया है । पर बली होने के कारण 'नुद' प्राप्त नहीं था अतः पूर्वप्रतिषेध का आरम्भ किया जाता है । इस स्थन पर 'तुम्' का अवकाश 'त्रपुणी इस प्रयोग में है । 'अग्निनाम' इस प्रयोग में 'नुम्' का अवकाश है 'पूणां' इस प्रयोग में दोनों की प्राप्ति होने पर पूर्व विप्रतिषेध से. 'नुद' होता है । 'तिम्र: ' इस प्रयोग में 'अचिर' आदेश का अवकाश है । नु८ का अवकाश उक्त स्थन में दर्शाया गया है । 'तिम्रणाम्' इस प्रयोग में दोनों की प्राप्ति होने पर पूर्व विप्रतिषेध से नुद होता है। तृज्वद भाव के अवकाशा 'क्रोष्ट' इस प्रयोग में है । नु का अवकाश दशाया गया है ।
1. लघु सिद्धान्त को मुदी, अजन्त पुल्लिंग प्रकरणम् , पृष्ठ 191. 2. अष्टाध्यायी, 7/1/96. 3. वही, 7/1/13.
4. वही, 7/2/100. 5. वही, 7/1/97.