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________________ फूलोंका गुच्छा। और सामान्य माली भी तुझसे घृणा करता है। हमारे पीछे पीछे छायाके समान लगे रहनेसे तुझे लज्जा नहीं आती ? _इस अपमानने यमुनाको स्पर्श भी न किया। क्योंकि यह तो उसको प्रतिदिन मिलनेवाला पदार्थ था--उसका आभरण था; किन्तु उसकी बहिनें जो वसन्तके दुःखमें हँसती थीं और उसको जिस पीड़ाके देनेका परामर्श करती थीं, उससे यमुनाके हृदयमें हजारों कांटोंके छिदनेके समान पीड़ा होने लगी। वह उनके अमानुषिक आनन्दको देखकर जीते रहनेकी अपेक्षा अपना मर जाना बहुत अच्छा समझती थी । यमुना यदि अपने श्रोणिताश्रुओंसे भीगे हुए हृदयसे ढंककर वसन्तको इस महती निष्ठुरतासे बचा सकती, तो बचा लेती परन्तु क्या करे, बेचारी असमर्थ थी। ___ उस पुष्पवनकी मन्द मन्द पवनसे भी यमुनाके हृदयसरोवरमें आज जो ऊंची ऊंची लहरें उठती थीं, वे बड़ी ही दुःखमयी थीं। आज इस बगीचेके जीवनस्वरूप मालीकी वेदना देखकर फूलोंका विकसित होना, पक्षियोंका कलरव करना, भ्रमरोंका गुंजन करना, चांदनीका खिलना और पवनका पत्ते पत्तेके साथ अठखेलियां करना उसे बड़ा बुरा मालूम होता था। यमुना बगीचेके इस निष्ठुर और निर्लज्ज व्यवहारको यदि अंधकारका काला पर्दा डाल कर ढंक सकती, तो अवश्य ढंक देती । उसे ऐसा भास होता था कि यह सारा बगीचा मेरी बहिनोंके षड्यंत्र में शामिल होकर वसन्तकी वेदनासे आनन्दित हो रहा है । आज यमुनाकी लज्जा उसीके वेदनाहत हृदयमें तीक्ष्ण छुरीके समान लगती थी। . दूसरे दिन सबेरे राजकुमारियोंने राजाके निकट जाकर वसन्तकी अवज्ञाका---गुस्ताखीका वर्णन किया और निवेदन किया कि इस असभ्य मालीको शूलीपर चढ़ाना चाहिए। राजकुमारियोंने बहुत दिनोंसे नरहत्याका दृश्य न देखा था। . राजाकी आज्ञासे वसन्त राजसभामें कैद करके लाया गया। उसने बिना किसी प्रकारकी आनाकानी किये अपना अपराध स्वीकार कर लिया । यदि वह झूठ बोलकर भी अपराध अस्वीकार करता, तो राजसभा सुखी होती; परन्तु नहीं, वसन्त अपने उस निराशाके जीवनसे मरना अच्छा समझता थाइसलिए उसने किसी भी तरहसे अपने अपराधको अस्वीकार न किया ।
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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