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________________ ___ अपराजिता। चली आई । आनन्दिताने यमुनासे हँसकर कहा-- अरी यमुना, जा तुझे वसन्त बुलाता है। वसन्त बुलाता है ? मुझे ? आनन्दसे, उल्लाससे. लज्जासे. संकोचसे, आशासे और आशंकासे यमुनाका हृदय धकधक करने लगा। वह अपनी बहिनोंकी ओर न देख सकी । उसने उनके क्रूर परिहास पर ध्यान न दिया। वह तीर्थयात्री भक्तके समान परम आनन्दसे, प्रथममिलन-भीता नवोढ़ाके समान कम्पित हृदयसे, लज्जासे, और संकोचसे धीरे धीरे जाकर वसन्तके सम्मुख चुपचाप मस्तक झुकाये जा खड़ी हुई। वसन्त उस समय जमीनपर पड़ा हुआ रो रहा था। उसने यमुनाकी ओर देखा भी नहीं। वसन्तको रोते देखकर यमुनाका हृदय फटने लगा । वह नहीं समझ सकी कि मेरी निर्मोहिनी बहिनें वसन्तको कौनसी दारुण व्यथा दे गई हैं। यमुना अपने उस व्यथित बन्धुकी ओर सजल और दयापूर्ण दृष्टिसे देखते देखते कांपते हुए कंठसे सान्त्वना देनेके लिए बोली-वसन्त ! वसन्त उच्छ्वसित गर्जनसे बोला-दूर हो, जा जल्लादको बुला ला! वह मुझे अभी शूलीपर चढ़ा दे ! __लज्जिता, व्यथिता और मितभाषिणी यमुना सजल नेत्रोंसे अपनी व्यर्थ सान्त्वनाको लेकर वहांसे धीरे धीरे चली गई । उसे वसन्तकी वेदना वसन्तसे भी द्विगुणित व्यथित करने लगी । यदि वह अपनी सारी शक्तिके, सारी शान्तिके, सारे भाग्यके और सारे सुखके बदले संसारको छानकर वसन्तको सान्त्वना दे सकती, तो देनेको तैयार थी; परन्तु उसका कहीं सम्मान न था । वह कुरूपा थी । अपनी असमर्थतासे वह आप ही पीड़ित होने लगी। सुन्दरी कुमारियोंने हँसकर पूछा--क्योंरी यमुना, मालीने तुझसे क्या कहा? इस बातका उत्तर वह रूपहीना क्या दे सकती थी ! उसने नीचेको सिर किये हुए केवल यह कहा कि कुछ नहीं । - सुन्दरियां अपने अट्टहाससे वृक्षोंपरके पक्षियोंको भयभीत करती हुई बोलीं--बाह रे शौकीन माली, तुझे काली कुरूपा पसन्द न आई ! यमुना, इस बातका विचार करनेसे भी हमको लज्जा आती है कि तू हमारी बहिन है
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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