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रबीन्द्र-कथाकुन्ज
सुकठिन बन्धनमें बाँध लिया, तथा एक पुष्पपुटतुल्य श्रोष्ठाधरने डाकूके समान अाक्रमण करके लगातार आँसुत्रोंसे भीगे हुए आवेगपूर्ण चुम्बनोंसे उन्हें विस्मय प्रकाशित करनेका भी अवसर न दिया। अपूर्व पहले तो चौंक उठे, उसके बाद वे समझ गये कि हास्य-बाधाके कारण असम्पन्न रही हुई बहुत दिनोंकी एक चेष्टा आज अश्रु-जलधारामें समाप्त हो गई।