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अध्यापक
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तक कल्पनाके द्वारा जिस प्रेम-समुद्रकी सृष्टि की थी, वह यदि वास्तविक होता, तो मैं बहुत दिनों तक किस प्रकार उसमें डूबता उतराता फिरता, यह मैं नहीं कह सकता । वहाँ श्राकाश भी असीम होता और समुद्र भी असीम होता । उस स्थानसे हम लोगोंकी नित्य प्रतिकी जीवन-यात्राका सीमाबद्ध व्यापार बिलकुल निर्वासित रहता । वहाँ तुच्छताका लेश मान भी नहीं होता। वहाँ केवल छन्द, लय और संगीतमें ही भाव व्यक्त करना होता । उसके तल तक पहुँच जानेपर फिर और कहीं ठिकाना नहीं मिलता । जब किरण डूबे हुए मुझ हतभाग्यको सिरके बाल पकड़कर उस जगहसे खींचकर अपनी श्रामकी बारी या बैंगनके खेतमें ले गई, तब अपने पैरों के नीचे जमीन पाकर मानो मेरी जानमें जान पा गई। उस समय मैंने देखा कि बरामदेमें बैठकर खिचड़ी पकानेमें, काठकी सीढ़ीपर चढ़कर दीवारपर खूटी ठोंकने में और नीबूके पेड़के घने हरे पत्तों से हरा नीबू ढूँढनेमें सहायता करने में अभावनीय आनन्द मिलता है और फिर मजा यह कि वह आनन्द प्राप्त करने में जरा भी प्रयास नहीं करना पड़ता ।
आपसे आप जो बात मुँह तक आ जाय, आपसे आप जो हँसी निकल पड़े, श्राकाशसे जितना प्रकाश प्रावे और वृक्षसे जितनी छाया पड़े, बह सब यथेष्ट ही होती है । इसके सिवा मेरे पास सोनेकी एक लकड़ी थी-मेरा नवयौवन , एक पारस पत्यर था- मेरा प्रेम; एक अक्षय कल्पतरु था—स्वयं अपने प्रति अपना पूरा और दृढ़ विश्वास । मैं विजयी था ; मैं इन्द्र था; मैं अपने उच्चैःश्रवाके मार्गमें कोई बाधा नहीं देखता था । किरण मेरी किरण है, इसमें मुझे कोई सन्देह नहीं था। यह बात मैंने इतनी देर तक स्पष्ट रूपसे नहीं कही थी ; परन्तु हृदयको एक कोनेसे दूसरे कोने तक बातकी बातमें बड़े सुखसे विदीर्ण करती हुई वह बात विद्युतकी तरह मेरे समस्त अन्तःकरणमें चकाचोंध डालकर क्षण-क्षणपर नाच उठती थी । किरण मेरी किरण है।