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________________ - प्रस्तावना उद्धृत किया है । पृ० ९१ में "विश्वदृश्वाऽस्य पुत्रो जनिता' प्रयोगका हृदयप्राही व्याख्यान किया है । इस तरह क्या भाषा, क्या विषय और क्या प्रसन्नशैली, हर एक दृष्टि से प्रभाचन्द्रका निर्मल और प्रौढ़ पाण्डित्य इस ग्रन्थमें उदात्तभावसे निहित है। प्रवचनसारसरोजभास्कर-यदि प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमलको विकसित करनेके लिए मार्तण्ड बनानेके पहिले प्रवचनसारसरोजके विकासार्थ भास्करका उदय किया हो तो कोई अनहोनी बात न होकर अधिक संभव और निश्चित बात मालूम होती है। (प्रमेय ) कमलमार्तण्ड, (न्याय) कुमुदचन्द्र, (शब्द) अम्भोजभास्कर जैसे सुन्दर नामोंकी कल्पिका प्रभाचन्द्रीय बुद्धिने ही ( प्रवचनसार) सरोजभास्करका उदय किया है । इस ग्रन्थकी संवत् १५५५ की लिखी हुई जीर्ण प्रति हमारे सामने है। यह प्रति ऐलक पन्नालाल सरखती भवन वम्बईकी है। इसका परिचय संक्षेपमें इस प्रकार है' पत्रसंख्या ५३, श्लोकसंख्या १७४६, साइज १३४६ । एक पत्रमें १२ पंक्तियां तथा एक पंक्तिमें ४२-४३ अक्षर हैं। लिखावट अच्छी और शुद्धप्राय है । प्रारम्भ "ओं नमः सर्वज्ञाय शिष्याशयः । वीरं प्रवचनसारं निखिलार्थ निर्मलजनानन्दम् । वक्ष्ये सुखावबोधं निर्वाणपदं प्रणम्याप्तम् ॥ श्रीकुन्दकुन्दाचार्यः सकललोकोपकारकं मोक्षमार्गमध्ययनरुचिविनेयाशयक्शेनोपदर्शयितुकामो निर्विघ्नतः शास्त्रपरिसमाप्त्यादिकं फलमभिलषन्निष्टदेवताविशेष शास्त्रस्यादौ नमस्कुर्वन्नाह ॥ छ ॥ एस सुरासुर".।" अन्त-"इति श्रीप्रभाचन्द्रदेवविरचिते प्रवचनसारसरोजभास्करे शुभोपयोगाधिकारः समाप्तः ॥छ॥ संवत् १५५५ वर्षे माघमासे शुक्लपक्षे पून्य(र्णि)मायां तिथौ गुरुवासरे गिरिपुरे व्या० पुरुषोत्तम लि० ग्रन्थसंख्या षट्चत्वारिंशदधिकानि सप्तदशशतानि ॥ १७४६ ॥" __ मध्यकी सन्धियोंका पुष्पिकालेख-"इति श्री प्रभाचन्द्रदेवविरचिते प्रवचनसारसरोजभास्करे..." है। इस टीका में जगह जगह उद्धृत दार्शनिक अवतरण, दार्शनिक व्याख्यापद्धति एवं सरल प्रसन्नशैली इसे न्यायकुमुदचन्द्रादिके रचयिता प्रभाचन्द्रकी कृति सिद्ध करनेके लिए पर्याप्त हैं। अवतरण-(गा० २।१० ) "नाशोत्पादौ समं यद्वन्नामोन्नामौ तुलान्तयोः” ( गा० २।२८) "खोपात्तकर्मवशाद् भवाद् भवान्तरावाप्तिः संसारः" इनमें दूसरा अवतरण राजवार्तिक का तथा प्रथम किसी बौद्ध
SR No.010677
Book TitlePramey Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherSatya Bhamabai Pandurang
Publication Year1941
Total Pages921
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size81 MB
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