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________________ . प्रमेयकमलमार्तण्ड सार्वः सन्ततसत्रिसन्धिनियतः पूर्वापरानुक्रमः। शब्दाम्भोजदिवाकरोऽस्तु सहसा नः श्रेयसे यं च वै ॥ नमः श्रीवर्धमानाय महते देवनन्दिने। प्रभाचन्द्राय गुरुवे तस्मै चाभयनन्दिने ॥ छ ॥ श्री वासुपूज्याय नमः । श्री नृपतिविक्रमादित्यराज्येन संवत् १९८० मासोत्तममासे चैत्र शुक्लपक्षे एकादश्यां ११ श्री महावीर संवत् २४४९ । हस्ताक्षर छाजूराम जैन विजेश्वरी लेखक पालम (सूबा देहली )" जैनेन्द्रव्याकरणके दो सूत्र पाठ प्रचलित हैं-एक तो वह जिस पर अभयनन्दिने महावृत्ति, तथा श्रुतकीर्तिने पञ्चवस्तु नामकी प्रक्रिया वनाई है; और दूसरा वह जिस पर सोमदेवसूरिकृत शब्दार्णवचन्द्रिका है। पं० नाथूरामजी प्रेमीने' अनेक पुष्ट प्रमाणोंसे अभयनन्दिसम्मत सूत्रपाठको ही प्राचीन तथा पूज्यपादकृत मूलसूत्रपाठ सिद्ध किया है। प्रभाचन्द्रने इसी अभयनन्दिसम्मत प्राचीन सूत्रपाठ पर ही अपना यह शब्दाम्भोजभास्कर नामका महान्यास बनाया है। आ० प्रभाचन्द्रने इस ग्रन्थको प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्रकी रचनाके बाद बनाया है जैसा कि उनके निम्नलिखित वाक्यसे सूचित होता है "तदात्मकत्वं चार्थस्य अध्यक्षतोऽनुमानादेश्च यथा सिध्यति तथा प्रपञ्चतः प्रमेयकमलमार्तण्डे न्यायकुमुदचन्द्रे च प्ररूपितमिह द्रष्टव्यम् ।" प्रभाचन्द्र अपने न्यायकुमुदचन्द्र (पृ० ३२९ ) में प्रमेयकमलमार्तण्ड ग्रन्थ देखनेका अनुरोध इसी तरहके शब्दोंमें करते हैं-"एतच्च प्रमेयकमलमार्तण्डे सप्रपञ्चं प्रपञ्चितमिह द्रष्टव्यम् ।” व्याकरण जैसे शुष्क शब्दविषयक इस ग्रन्थमें प्रभाचन्द्रकी प्रसन्न • लेखनीसे प्रसूत दर्शनशास्त्रकी क्वचित् अर्थप्रधान चर्चा इस ग्रन्थके गौरवको असाधारणतया बढ़ा रही है। इसमें विधिविचार, कारकविचार, लिंगविचार जैसे अनूठे प्रकरण हैं जो इस ग्रन्थको किसी भी दर्शनग्रन्थकी कोटिमें रख सकते हैं। इसमें समन्तभद्रके युक्त्यनुशासन तथा अन्य अनेक आचार्योंके पद्योंको प्रमाण रूपसे १ देखो-जैनेन्द्रव्याकरण और आचार्य देवनन्दी' लेख, जैनसाहित्य संशोधक भाग १ अंक २। ' २ पंडित नाथूलाल शास्त्री इन्दौर सूचित करते हैं कि तुकोगंज इन्दौरके ग्रन्थभण्डारमें भी शब्दाम्भोजभास्करके तीन ही अध्याय हैं । उसका मंगलाचरण तथा अन्तिम प्रशस्तिलेख बन्बईकी प्रतिके ही समान है । पं० भुजबलीजी शास्त्रीके पत्रसे शात हुआ है कि कारकलके मंठमें भी इसकी प्रति है । इस प्रति में भी तीन अध्यायका न्यास हैं। प्रेमीजी सूचित करते हैं कि बंबईके भवनमें इसकी एक प्राचीन प्रति है उसमें चतुर्थ अध्यायके तीसरे पादके २११ वें सूत्र तकका न्यास है, आगे नहीं । हो सकता है कि यह प्रभाचन्द्रकी अन्तिमकृति ही हो और इसलिए पूर्ण न हो सकी हो।
SR No.010677
Book TitlePramey Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherSatya Bhamabai Pandurang
Publication Year1941
Total Pages921
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size81 MB
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