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________________ कहा न माने उनके प्रति कुछ भी न कहकर मैं मौन धारण कर लू, मेरा काम करता है। विनतिग्स्तु मने परमहनेऽपि मम भो कामंतवई ! ते । वपुष एवमिहाकलितात्मने प्रधतकमकलकहराधन ।१७ प्रयं--- उन मजननों के शिरोमरिग भगवान महन्त देव के लिये मेर। नमाकार हो, और हे मयूरपिनिका के रखने वाले सायो! मापके लिये भी मेग नमस्कार हो जिन्होंने कि प्रात्मा को हम शरीर से भिन्न ममझ लिया है और उसे दूर हटाने के लिये सम्पूर्ण कम कलहों को नाश करने का मार्ग पकड़ लिया है। म्वमिति सम्बदनोऽङ्गमिदंगलनद नवन्धि च बन्धनया दलं । किमु वदानि जनम्य विमोहिनः म जयनादधुना भगवाजिनः ।१८ प्रषं मड़ने और गलनेवाले इस शरीर को हो जो प्रात्मा मान रहा है और उमो माय नाता जोड़ने वाले जन समूह को जो अपना बन्धु समझ रहा है, उम मोही प्रादमी के बारे में तो मुझे कहना हो क्या है, मैं ता प्रब उन जिन भगवान को हो पाव करता हूं, वे जयवन्त रहे, जिन्होंने कि अपने इन्द्रिय प्रोर मन को वश में कर लिया। यदिह पीद्गलिकं सगमाक्षिकं तदनुकतु ममुष्य किलाक्षिकं । लगनि नेन गनिः पुनर्गदृशी जगनि किन जनो भानावशी ।१० प्रयं-इम संमार में पुद्गल के मम्बन्ध मे होने वाले और भरण भर में नष्ट हो जाने वाले बनावटी मुख को प्राप्त करने के
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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