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________________ ७६ अथ सप्तम मर्गः रुचिकरे मुखमुद्धग्नथ कदापि स चक्रपुरेश्वरः कमपिमुदीक्ष्य तदामितं समवदयमदूतमिवोदितं ॥ | १ || प्रयं प्रव किसी एक दिन चक्कपुर का राजा वह चक्रायुद्ध बहुत ही चमकीले दर्पण में मुख देख रहा था कि उसे एक सफेद कपने माथे में दीख पड़ा जिसकों कि उसने यमके दूत के समान माया हुवा माना और मीचने लगा कि - ननु जग पृतनायमपतेर्मममममुपाश्चितुमीहते । बगदाहि तदग्रतः शुचिनिशानमुदेति अदो वत || २ || प्रर्थ - श्रहो यमरूप राजा की जरारूप सेना बहुत से रोगरूप मुग्दरों को लिये हुये वह मेरे पास अब प्राना ही चाहती है ताकि उसके पहले उसका यह सफेद केशरूप निशान मेरे सम्मुख उपस्थित है। तरुणिनोपवनं सुमनोहरं दहति यदमनाग्निरतः परं । भवति ममकलेव किलामको पलितनामनया ममृदामको | ३| श्रथं - एक उदासीन प्रादमी के कहने में यह सफेद केश क्या है मानों फूलों से लदे हुये बर्गाचे सखि सुन्दर यौवन को काल रूप श्रग्नि जलाया करती है जिससे पंदा हुई भइम की कला ही है । नववधू किल संकुचनान्मतिर पसरेन्मुखचारिभिषाधृतिः विवलताच्चकटी कुलदेव मा स्खलतु पिच्छलगेव नारमा |४|
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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