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भी प्रपने प्राप से हो रोगों को प्रति नरकादि के दुःखों को अपनाने के लिये प्राज भो इन भोगों को हो भोगने में एकाम्त रूपसे लमा हवा है मोक्या तेरे लिये ऐमा करना उचिपा ? नहीं, पोंकि रोग एवं नाके पशुमोनावस्ति मोऽगणितकष्ट महो ना भागभागपि भान परितोऽयमन्ततोऽग इव भान्यपतोयः ।।
प्रथ-देव बेटे ! यह मंमागे प्राणो भोगों में फंसकर उसको पजा मे नरक में पता है वहां को हमके लिये रोगों के मिया कप है ही नहीं, रात दिन मग प्याम मारणतारन और प्राधि पाधिको छोड़कर एक समय भी शान्ति के लिये नही होता । वहां से निकल पशु पर्याय में प्राता हे नाव पर भी भूव पास सर्यो गर्मो वगंग के प्रगित कम महन करने परने हैं। प्रोर फिर पा मे वाकिम नक प्रारम करता है, प्रगर को भाग्य से स्वगं भी चला गया तो वहां भी परलेको ।ई कमाई को भोग कर प्रात में बिना पानी के सूख गये हर पेपको तर मे घाम से नीचे गिरता
योग एक इह मानवतायामेव मुदतमस्तु अपायान भोगतां गमयतः पुनता किं भवेदनमवेद ददनेताः ।।
पर्य-प्रगर एक रोमा योग जो कि हम प्रारमा को गायों से बचाकर इसका भला कर दे कर हम मनुष्य गति में ही प्राप्त हो सकता है किन्तु मो प्रादपो हमको भो पाकर ऐमा योग नहीं मिलाता प्रत्युत इमे भी भोग भोगते हुये हो खो देता है फिर उसका